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कूनो राष्ट्रीय उद्यान (Kuno National Park)
भारत के मध्य प्रदेश राज्य में एक सरंक्षित क्षेत्र है जिसे वर्ष 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ था। इसकी स्थापना सन् 1981 कूनो-पालपुर वन्यजीव अभ्यारण्य के रूप में की गई थी। यह राज्य के श्योपुर और मुरैना जिलों में फैला हुआ है| नामीबिया में तापमान 31-32 डिग्री सेल्सियस है. कूनो नेशनल पार्क में भी 30 डिग्री सेल्सियस तापमान है. नामीबिया में ग्रासलैंड यानी सवाना वुडलैंड का क्षेत्रफल 3200 वर्ग किलोमीटर ही है, नामीबिया और कूनो का मौसम अर्द्ध शुष्क रहता है|
अल्सीसियन फीमेल डॉग को ट्रेनिंग
कूनो नेशनल पार्क में 8 चीतों की सुरक्षा के लिए एक कुत्ते को प्रशिक्षित किया जा रहा है. इन चीतों को नेशनल पार्क के एक विशेष बंद बाड़े में रखा जाएगा. ये बाड़ा काफी बड़े इलाके में फैला है. चीतों को शिकारियों से बचाने के लिए एक अल्सीसियन फीमेल कुत्ता जीका नाम ‘इलू’ है इसको ‘कमांडो’ बनाया जा रहा है|
कैसे हुयी विलुप्त हुए चीते की फिर से वापसी
चीता दुनिया का सबसे तेज़ रफ़्तार से दौड़ने वाला जानवर है जो 100 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की रफ़्तार से दौड़ सकता है। आज पूरी दुनिया में सिर्फ़ अफ्रीका में गिने-चुने चीते हैं । भारत समेत एशिया के कमोबेश हर देश से ये जानवर विलुप्त हो चुका है। इतने सालों बाद फिर से चीतों की वापसी हो रही है। 1947 में सरगुजा महाराज रामानुशरण सिंह के साथ चीते की एक एक तस्वीर सामने आयी थी जिसको आखिरी चीता मान लिया गया था। इसके बाद 1952 में देश को चीता लुप्त घोषित कर दिया गया था। चीता जब अपनी पूरी ताकत से दौड़ता है तो वह 7 मीटर के लगभग अपनी एक छलांग लगता है|
प्रोजेक्ट चीता के तहत इस जगह का सर्वेक्षण क्यों और कैसे हुयी
2010 और 2012 के बीच मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में दस साइट्स का सर्वेक्षण किया गया. बाद में यह पाया गया कि मध्य प्रदेश यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के कोरिया के साथ जंगलों से मिलता जुलता है. बता दें कि कोरिया में लगभग 70 साल पहले एशियाई मूल के चीते को आखिरी बार देखा गया था.
क्या है इस नेशनल पार्क का इतिहास
कूनो नदी के किनारे बसे इस नेशनल पार्क का अपना एक इतिहास है। इस अभयारण्य के अंदर सदियों पुराने किलों के खंडहर मौजूद हैं। चंद्रवंशी राजा बाल बहादुर सिंह ने वर्ष 1666 में यह गद्दी हासिल की थी। पार्क के अंदर दो अन्य किले हैं – आमेट किला और मैटोनी किला, जो अब पूरी तरह से झाड़ियों और जंगली पेड़ों से ढक चुके हैं। कूनो में ग्वालियर के राजा महाराजा यहाँ पर शिकार करने आते थे |
इसे कब मिला नेशनल पार्क का दर्जा?
स्थापना के समय इस वन्यजीव अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 344.68 वर्ग किलोमीटर था। बाद में इसमें और इलाकों को जोड़ा गया| अब यह करीब 750 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 2009 में, कूनो वन्यजीव अभयारण्य को भी भारत में चीता के पुनर्वास के लिए एक संभावित स्थल के रूप में प्रस्तावित किया गया था। 5 दिसंबर 2018 में राज्य सरकार ने वन्यजीव अभयारण्य की स्थिति को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में बदल दिया और संरक्षित क्षेत्र को 413 वर्ग किमी (159 वर्ग मील) तक बढ़ा दिया।
प्रोजेक्ट चीता की मॉनिटरिंग कैसे होगी
17 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी अपने 72वें जन्मदिन पर अफ्रीका के नामिबिया से लाए गए 8 चीतों का मध्य प्रदेश स्थित कूनो नेशनल पार्क में स्वागत किया। गौरतलब है कि इन 8 चीतों में 5 मादा और 3 नर चीते शामिल हैं। इसकी मॉनिटरिंग बाड़े में चीतों की सुरक्षा, दूसरे वन्यजीवों के मूवमेंट और अन्य संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने के लिए वायरलेस-आइपी(इंटरनेट प्रोटोकॉल) पीटीजेड(पेन-टिल्ट-जूम) कैमरा मॉनिटरिंग सिस्टम के साथ लगाए गए चारों विशेष कैमरे 24 घंटे चालू रहेंगे। इसका कंट्रोल रूम पालपुर स्थित रेस्टहाउस में रहेगा। कूनो नेशनल पार्क में मौजूद सभी चीतों पर Sattelite Caller ID तकनीक की सहायता से निगरानी रखी जाएगी
प्रोजेक्ट चीता के लिए कूनो नेशनल पार्क को ही क्यों चुना गया
इन चीतों को पूरे देश के नामी-गिरामी नेशनल पार्क को छोड़कर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में क्यों लाया गया है लोगों के जहन में ये सवाल भी पैदा रहे हैं आइये चलिए जानते हैं कि
- इंसानी दखलअंदाजी न के बराबर है। यहां मौजूद इंसानी बस्तियों को काफी पहले ही हटाया जा चुका है।
- पार्क के बीच में कूनो नदी बहती है। आसपास छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जो चीतों के लिए बिल्कुल मुफीद हैं।
- पानी के लिए चीतों को दूर तक न जाना पड़े इसके लिए आर्टिफिशयल तालाब और नाले भी बनाए गए हैं।
- चीते को ग्रासलैंड यानी थोड़े ऊंचे घास वाले मैदानी इलाकों में रहना पसंद है। जो यहां मौजूद हैं।
- कूनों में चीतों को साउथ अफ्रीका के जंगल से मिलता हुआ माहौल और तापमान मिलेगा।
- इस एरिया में पहले ही करीब 200 सांभर, चीतल व अन्य जानवर खासतौर पर लाकर बसाए गए हैं। ऐसे में चीते को यहां शिकार का भरपूर मौका मिलेगा।
एक नजर इस पर भी –
- 750 वर्ग किलोमीटर में फैला है यह पार्क
- 100 किमी दूर स्थित है रणथंबोर नेशनल पार्क से
- 500 साल पुराने पालपुर किलों के खंडहर हैं पार्क में मौजूद
- 180 किलो मीटर लंबी कूनो नदी इस नेशनल पार्क के बीच से बहती है
- 2018 में सरकार ने इसे घोषित किया नेशनल पार्क
- 20 से अधिक प्रजातियों के जानवर पाए जाते हैं यहां
- 1981 में हुई थी कूनो-पालपुर वन्यजीव अभयारण्य की स्थापना
- 123 प्रजातियों के पेड़ और 71 प्रजाती की झाड़ियों पाई जाती हैं यहां