भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है। यद्यपि भारत का संविधान संघात्मक है, फिर भी यहां नागरिकों को केवल एक की नागरिकता (भारत की) प्रदान की गयी है, जबकि विश्व के परिसंघीय सविधानों जैसे अमेरिका और स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था है। इन देशों में राष्ट्रीय नागरिकता के अतिरिक्त उस राज्य की Citizenship भी प्राप्त होती है जहां उस व्यक्ति का जन्म हुआ है, किंतु भारत में एक ही नागरिकता उपलब्ध है चाहे वह किसी भी राज्य का निवासी हो।
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नागरिकता : Citizenship
नागरिकता के सम्बन्ध में भारतीय संविधान के भाग 2 में अनुच्छेद 5 से लेकर अनुच्छेद 11 तक उल्लेख किया गया है। इन अनुच्छेदों में केवल यह प्रावधान किया गया है कि भारत का नागरिक कौन है और किसे भारत का नागरिक माना जायेगा। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद ।। द्वारा संसद को भविष्य में Citizenship के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार का प्रयोग करके संसद ने “नागरिकता अधिनियम-1955” पारित किया।
उस अधिनियम में 1986 तथा 1992 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गये। इस अधिनियम में Citizenshipके अर्जन तथा समाप्ति की व्यवस्था की गयी है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि संविधान के प्रारंभ के बाद, Citizenship के अधिकारों से संबंधित सभी मामलों का निबटारा नागरिकता अधिनियम-1955 के उपबंधों के अनुसार ही किया जाना है।
अनुच्छेद 5 : संविधान के प्रारंभ होने की विधि पर वह प्रत्येक व्यक्ति जो भारतीय राज्य क्षेत्र का निवासी था, जो भारत में उत्पन्न हुआ हो या माता-पिता दोनों में से कोई भारत में जन्मा हो अथवा संविधान के प्रारंभ से पांच वर्ष पूर्व से भारत का निवासी रहा हो, वह भारत का नागरिक माना जायेगा।
अनुच्छेद 6 : पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्ति को भारतीय Citizenship के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद 7 : भारत से पाकिस्तान चले गये व्यक्तियों की नागरिकता के अधिकार का प्रावधान किया गया है। अनुच्छेद 7 में उन व्यक्तियों की नागरिकता के अधिकारों के सम्बन्ध में विशेष उपबंध किए गये हैं जो 1 मार्च, 1947 के बाद पाकिस्तान प्रवास कर गये थे, किंतु बाद में भारत लौट आये थे।
अनुच्छेद 8: संविधान के इस अनुच्छेद में विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के लिए नागरिकता के अधिकार का उपबंध है। ऐसे व्यक्तियों के लिए अनुच्छेद 8 में प्रावधान किया गया है कि कोई व्यक्ति या उसके माता-पिता या पितामह में से कोई भारत शासन अधिनियम, 1935 के अनुसार भारत में जन्मा था और जो भारत के बाहर किसी देश में सामान्यतया निवास कर रहा है, उसे भारत का नागरिक समझा जायेगा।
लेकिन शर्त ये है कि उसे नागरिकता की प्राप्ति के लिए सम्बद्ध देश में भारत के राजनयिक या कौसिलीय प्रतिनिधि द्वारा भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर लिया गया हो।
अनुच्छेद 9: यदि किसी व्यक्ति ने स्वेच्छा से विदेशी Citizenship स्वीकार कर ली हो तो वह किसी उपबंध के अनुसार Citizenship का अधिकार होते हुए भी भारत का नागरिक नहीं माना जाएगा। यह प्रावधान केवल उन लोगों से सम्बन्धित है, जिन्होंने संविधान प्रारंभ होने के पहले स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की Citizenship प्राप्त कर ली थी।
अनुच्छेद 10 : इस अनुच्छेद में Citizenship के अधिकारों के बने रहने का प्रावधान है। किसी नागरिक की Citizenship का अधिकार, संसदीय विधान के अतिरिक्त किसी अन्य विधि से नहीं छीना जा सकता है (इब्राहिम वजीर बनाम बम्बई राज्य-1954)।
अनुच्छेद 11 : इस अनुच्छेद के उपबंध के तहत देश की राष्ट्रीयता के संबंध में संसद को परिस्थिति के अनुकूल कानून बनाने का पूर्ण अधिकार दिया गया है। यह अनुच्छेद संसद को भारत की Citizenshipके अर्जन तथा निरसन के सम्बन्ध में तथा उससे संबंधित सभी विषयों के सम्बन्ध में विधि बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इसी अनुच्छेद के आधार पर संसद ने Citizenship अधिनियम, 1955 पारित किया, जिसमें Citizenship के अर्जन तथा निरसन की व्यवस्था की गयी है।
नागरिकता अधिनियम-1955
Citizenship का अर्बन : इस अधिनियम के तहत भारतीय Citizenship निम्न पांच तरह से अर्जित की जाती है।
(i) जन्म द्वारा नागरिकता : जिस व्यक्ति का जन्म 26 जनवरी, -1950 को या उसके पश्चात भारत में हुआ हो, जन्म से भारत का नागरिक होगा। किंतु इस नियम के दो अपवाद है- प्रथम विदेश के राजनैतिक कर्मचारियों के भारत में पैदा होने वाले बच्चे और द्वितीय, शत्रुओं के अधीन भारत के किसी भाग में पैदा होने वाले बच्चे।
(ii) वंश परंपरा द्वारा नागरिकता : 26 जनवरी 1950 या उसके पश्चात भारत के बाहर जन्म लेने वाला बच्चा वंशानुक्रम से भारत का नागरिक होगा, यदि उस समय उसका पिता भारत का नागरिक हो। इसके अतिरिक्त भारतीय नागरिकों के बच्चे और उन लोगों के बच्चे जो भारत के नागरिक न होते हुए भी भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन सेवा कर रहे हैं, वे इस उपबंध का लाभ उठा सकते हैं और पंजीकरण द्वारा भारतीय नागरिक बन सकते हैं।
(iii) देशीयकरण द्वारा नागरिकता : कोई भी विदेशी व्यक्ति जो वयस्क हो चुका है तथा प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं है, भारत सरकार से Citizenship के लिए आवेदन कर सकता है। लेकिन इसके लिए कुछ शतों का पूरा होना आवश्यक है।
1. वह जिस देश का नागरिक है, उसकी Citizenship का त्याग,
2. संबंधित देश में निश्चित अवधि तक निवास,
3. सद्चरित्र होना,
4. आवेदन प्रस्तुत करने के तत्काल पूर्व कम से कम 1 वर्ष तक भारत में निवास
5. संविधान में उल्लिखित किसी एक भाषा का ज्ञान, तथा
6. राष्ट्र के प्रति सकारात्मक आस्था का होना।
इस उपबंध में एक प्रावधान यह भी है कि यदि कोई व्यक्ति विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य, विश्वशांति अथवा मानव विकास के क्षेत्र में विशेष कार्य कर चुका हो, तो उसे उपयुक्त सभी शतों को पूरा किए बिना भी देशीयकरण द्वारा Citizenship प्रदान की जा सकती
(iv) पंजीकरण द्वारा नागरिकता : जो व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है, वह पंजीकरण द्वारा भारत की Citizenship प्राप्त कर सकता है, यदि वह निम्न शर्तों को पूरा करता होः
1. पंजीकरण के लिए आवेदन करने के कम से कम 7 वर्ष पूर्व सेभारत में रहता हो।
2. वे स्त्रियां जो भारतीय नागरिक के साथ विवाह कर लें।
3. भारतीय नागरिक के अल्प वयस्क बच्चे।
4. राष्ट्रमंडल के राज्यों के तथा आयरलैंड के वयस्क और स्वस्थ बच्चे।
(v) अर्जित भू-भाग के विलयन द्वारा नागरिकता : यदि किसी नये भू-भाग को भारत में शामिल किया जाता है, तो उस क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्यिों को स्वत: ही भारत की Citizenship मिल जाती है। गोवा, दमन एवं दीव, पाण्डिचेरी तथा सिक्किम के राज्य क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को इसी आधार पर Citizenship प्राप्त हुई थी।
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