राज्य के नीति निर्देशक तत्व : राज्य के नीति निर्देशक तत्व को संविधान के भाग 4(अनुच्छेद 36-51) में समाहित किया गया है। आयरलैंड के संविधान के पूर्वोदाहरण के अलावा कल्याणकारी राज्य की स्थापना का उद्देश्य इसके मूल प्रेरक तत्व रहे हैं।
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समान सिविल संहिता
अनुच्छेद 44 एक ऐसा अनुच्छेद है जिसे क्रियान्वित करने में राज्य आनाकानी कर रहा है। इसमें पहला कदम 1954 में उठाया गया था जब विशेष विवाह अधिनियम पारित किया गया था। इसके बाद हिंदुओं की वैयक्तिक विधि में एकरूपता लाने के लिए 4 अधिनियम पारित किए गए। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
अनुच्छेद 44 इस संकल्पना पर आधारित है कि सभ्य समाज में धर्म और वैयक्तिक विधि के बीच कोई अनिवार्य संबंध नहीं है। राज्य द्वारा हिंदू और मुसलमानों में विभेद किया जाना अन्याय है। हिंदुओं की पारंपरिक विधि को आधुनिक रूप देकर इसका संहिताकरण कर दिया गया है। मुस्लिम स्त्रियों को उन अधिकारों से वंचित करन जो हिंदू, ईसाई या अन्य महिलाओं को प्राप्त है, उनके प्रति अन्याय है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता की प्रत्याभूति देता है। अनुच्छेद 44 धर्म को वैयक्तिक विधि से अलग रखता है। अपराध या साक्ष्य से संबंधित मुसिलम विधि अब लागू नहीं होती। सबके लिये एक ही दंड और साक्ष्य विधि लागू होती है चाहे वे किसी भी धर्म को मानते हों।
अब समय आ गया है कि विवाह, विवाह-विच्छेद, दत्तक ग्रहण और उत्तराधिकार से संबंधित एक ही विधि सभी नागरिकों पर लागू हो, चाहे वे किसी भी धर्म के अनुयायी हो। जब तक एक समान सिविल संहिता नहीं होगी, तब तक भारत के लोग समामेलित होकर एकीकृत राष्ट्र नहीं बनाएंगे।
पथनिरपेक्षता जो संविधान का आधारिक लक्षण है, संविधान के उपबंधों को क्रियान्वित करके ही प्राप्त की जा सकती है, और अनु, 44 की इसमें प्राणवान भूमिका हैं अनुच्छेद 44 वह मार्ग दिखाता है जिसमें सभी लोग, मुसलमानों सहित, मुख्यधारा में आ जाएंगे। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए कि समान सिविल संहिता का यह अर्थ नहीं है कि हिंदू विधि सभी पर लागू होगी। इसका यह अर्थ है कि एक संहिता अधिनियमित की जाएगी, जो सभी पर लागू होगी। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
सामंजस्यपूर्ण संरचना का सिद्धांत
भारत के संविधान में उल्लिखित मूल अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्व एक ही संवैधानिक डांचे के अभिन्न अंग हैं तथा इन दोनों का साक्ष्य भी एक है- व्यक्तित्व का विकास तथा लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना। दोनों ही संविधान की आत्मा हैं।
मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ के मामले में कहा गया कि नौति निर्देशक तत्वों को कार्यान्वित करने के लिए मूल अधिकारों को समाप्त करना आवश्यक नहीं है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वास्तव में नीति निर्देशक तत्व वे लक्ष्य हैं जिन्हें हमें प्राप्त करना है और मूल अधिकार वे साधन हैं जिनके माध्यम से उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना चाहिए।
भाग-3 और भाग-4 के बीच संतुलन भारतीय संविधान की आधारशिला है। अतः एक भाग को दूसरे भाग पर पूर्णरूपेण प्राथमिकता देना इस संतुलन को नष्ट करना है, जो संविधान के आधारभूत ढांचे का आवश्यक अंग है। केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य मामले में भी इन दोनों को एक-दूसरे का पूरक तथा अनुपूरक बताया गया तथा यह भी कहा गया कि इन दोनों के बीच कोई संघर्ष नहीं है।
गांधीवाद से प्रभावित निर्देशक तत्व
अनुच्छेद 40 : ग्राम पंचायतों को स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में संगठित करना।
अनुचोद 43 : कुटीर उद्योगों की उन्नति के प्रयास।
अनुच्छेद 45 : बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा।
अनुच्छेद 46 : जनता के दुर्बल वर्गों विशेषकर अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों का संवर्द्धना
अनुच्छेद 47 : मादक द्रव्यों और हानिकारक औषधियों का निषेधा
अनुच्छेद 48 : कृषि एवं पशुपालन को आधुनिक वैज्ञानिक ढंग से संगठित करना तथा गायों, बछड़ों, दूध देने वाले ग्राहक पशुओं की रक्षा एवं वध का प्रतिबंध|
नागरिकों के अधिकार जो न्याय योग्य नहीं हैं
अनुच्छेद 39: जीविका के पर्याप्त साधन के अधिकार, समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, आर्थिक शोषण के विरुद्ध अधिकार, बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से रक्षा पाने का और स्वतंत्र तथा गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर | पाने का अधिकार, समान न्याय एवं निःशुल्क विधिक सहायता पाने | का अधिकार। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
अनुच्छेद 41 : काम पाने का अधिकार, बेकारी बुढ़ापा तथा कुछ| अन्य परिस्थितियों में लोक सहायता पाने का अधिकार
अनुच्छेद 42: काम की न्यायसंगत एवं मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करना तथा प्रसूति सहायता।
अनुच्छेद 43 : उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों की भागीदारी।
अनुच्छेद 45 : बालकों का नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा पाने | का अधिकार को लागू करने में सरकारों को सबसे अधिक कठिनाई का समाना करना पड़ा है। इसको तब तक लागू करना कठिन है, जब तक कि सभी प्रमुख धार्मिक वर्ग सामने आकर अपनी सहमति न प्रकट करो उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1995 में सरकार को यह निर्देश दिया था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के अब तक क्या प्रयास किए गये हैं, वह इसपर एक रिपोर्ट पेश करे। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
मौलिक अधिकार तथा निर्देशक सिद्धांत
(1) मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू हो सकते हैं, जबकि राज्य नीति के निर्देशक तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं हो सकते हैं। अर्थात मौलिक अधिकार वाद योग्य हैं जबकि नीति निर्देशक तत्व वाद | योग्य नहीं हैं।
(2) मौलिक अधिकार नकारात्मक हैं, जबकि निर्देशक सिद्धांत | सकारात्मक हैं।
(3) मौलिक अधिकारों का लक्ष्य राजनैतिक लोकतंत्र की स्थापना है, जबकि निर्देशक तत्वों द्वारा आर्थिक लोकतंत्र एवं कल्याणकारी गन्य की स्थापना का प्रयास किया गया है।
(4) मौलिक अधिकार अत्यातिक नहीं हैं, उनपर कुछ प्रतिबंध हैं, जबकि निर्देशक सिद्धांतों पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
(5) मौलिक अधिकारों को (अनुच्छेद 20 तथा 21 में वर्णित अधिकारों को छोड़कर) अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत घोषित आपातकालीन स्थिति में निलम्बित किया जा सकता है, जबकि निर्देशक तत्वों को किसी भी स्थिति में निलम्बित नहीं किया जा सकता है।
(6) मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों में पारस्परिक विरोध की स्थिति में मौलिक अधिकार ही प्रभावी होंगे।
समाजवाद से प्रभावित निर्देशक तत्व
अनुच्छेद 38 : राज्य, लोक कल्याण की सुरक्षा और अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेगा।
अनुच्छेद 39 : सभी को जीविका के पर्याप्त साधन का अधिकार तथा समुदाय की भौतिक सम्पदा का स्वामित्व तथा नियंत्रण सामूहिक हित में, समान कार्य के लिए समान वेतन, पुरुषों तथा स्त्रियों के स्वास्थ्य और शक्ति का और बच्चों को सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो, समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता का अधिकार
अनुच्छेद 41 : काम पाने, शिक्षा पने तथा कुछ विशेष परिस्थितियों में लोक सहायता पाने का अधिकारा
अनुच्छेद 42: काम का न्यायसंगत एवं मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करना तथा प्रसूति सहायता।
अनुच्छेद 43 : उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों की भागीदारी।
अनुच्छेद 45: 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क एवं अनिवार्य | शिक्षा का प्रावधान।
नीति निदेशक तत्व की विशेषताएं
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