संघीय कार्यपालिका संविधान के भाग के अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय कार्यपालिका का विस्तार से वर्णन किया गया है संघीय कार्यपालिका के अन्तर्गत राष्ट्रपति के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी सम्मिलित होते हैं।
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संघीय कार्यपालिका | Federal Executive
मंत्रिपरिषद के कार्य तथा शक्तियां
मंत्रिपरिषद के कार्य तथा शक्तियां अत्यंत व्यापक हैं। इसी कारण इसे ‘सरकार का प्रधान निर्देशक यंत्र’ कहा जाता है। मंत्रिमंडल का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण करना है। मंत्रिमंडल द्वारा यह निश्चय किया जाता है कि आंतरिक क्षेत्र में प्रशासन के विभिन्न विभागों द्वारा और वैदेशिक क्षेत्र में दूसरे देशों के साथ संबंधों के विषय में किस प्रकार की नीति अपनायी जायेगी। मंत्रिपरिषद् के प्रमुख कार्य तथा शक्तियां निम्न हैं
1. प्रशासनिक शक्तियां
(i) मंत्रिपरिषद शासन की नीतियों का निर्धारण करती है तथा उसे संसद के समक्ष प्रस्तुत करती है।
(ii) संसद द्वारा बनाये गये कानूनों को लागू करने की जिम्मेदारी मंत्रिपरिषद पर ही है।
(iii) प्रशासन के लिए आवश्यक नियम और उपनियम मंत्रिपरिषद को बनाती है।
(iv) देश की लगभग सभी प्रमुख नियुक्तियां मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
2. विधायी शक्तियां
(i) संसद के दोनों सदनों में अधिकांश विधेयक मंत्रियों द्वारा ही प्रस्तावित किए जाते हैं।
(ii) मंत्रिपरिषद् के परामर्श से ही राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करता है।
(iii) संवैधानिक दृष्टि से लोकसभा को भंग करने का अधिकार राष्ट्रपति का है, परंतु संसदीय शासन की परंपरा के अनुसार राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का उपयोग प्रधानमंत्री की सलाह से ही करता है।
3. वित्तीय शक्तियां
(i) बजट का निर्माण, करों का आरोपण और सरकार के सभी विभागों के लिए व्ययों का अनुमान तैयार करना मंत्रिमंडल का ही कार्य
(ii) मंत्रिपरिषद की स्वीकृति के बाद ही राजकीय बजट वित्तमंत्री द्वारा लोकसभा में रखा जाता है।
4. अन्य शक्तियां
उपर्युक्त शक्तियों के अलावा मंत्रिपरिषद और भी कई शक्तियों का उपयोग करती है। उदाहरणस्वरूप आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तभी की जाती है, जब मंत्रिपरिषद लिखित रूप से राष्ट्रपति से ऐसा करने की सिफारिश करे। राष्ट्रपति किसी दोषी पाए गए व्यकिा को क्षमा प्रदान करने की शक्ति का प्रयोग विधिमंत्री के सलाह पर ही करता है। प्रधानमंत्री अथवा मंत्रिपरिषद सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के विषय में भी राष्ट्रपति को परामर्श देती है।
5. वैदेशिक संबंधों पर नियंत्रण का कार्य
वैदेशिक में मंत्रिमंडल का पूर्ण नियंत्रण होता है। विदेशी राज्यों के अध्यक्षों या सरकारों के साथ सभी वार्ताओं का संचालन प्रधानमंत्री या विदेशमंत्री या प्रधानमंत्री के किसी अन्य प्रतिनिधि द्वारा किया जाता है। जब वाताओं के परिणामस्वरूप कोई संधि या समझौता हो जाता है, तो संसद को उसके संबंध में सूचना दे दी जाती है और यदि आवश्यक हुआ तो संसद से उसकी स्वीकृति प्राप्त कर ली जाती है।
भारत का महान्यायवादी
संघीय सरकार को विधि संबंधी विषयों पर परामर्श देने तथा राष्ट्रपति द्वारा नियोजित कर्तव्यों की पूर्ति के लिए संविधान में महान्यायवादी की व्यवस्था की गयी है। महान्यायवादी भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है। यह भारत सरकार को कानूनी मामलों में सलाह देता है।
नियुक्ति:
संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी। राष्ट्रपति महान्यायवादी की नियुक्ति संघ मंत्रिमंडल की सलाह पर ही करता है।
योग्यता: महान्यायवादी के पद पर उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकता है, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश होने की योग्यता रखता है।
पदावधि तथा वेतनः महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसाद-पर्यन्त पद धारण करता है। उसके वेतन निर्धारित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
कर्तव्यः विधि अधिकारी के रूप में उसके निम्नलिखित कर्तव्य है
(i) भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देना और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करना, जो राष्ट्रपति समय-समय पर उसको निर्देशित करे या सौंपे।
(ii) उन कृत्वों का निर्वहन करन जो उसे भारतीय संविधान द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा उसे प्रदान किया गया हो।
अधिकार: महान्यायवादी संसद या मंत्रिपरिषद का सदस्य नहीं होता, तथापि अनुच्छेद 88 के अनुसार उसे किसी भी सदन या संसद के किसी भी समिति की बैठक में भाग लेने और अपने विचार प्रकट करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन उसे मत देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। उसके अतिरिका उसे अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के किसी भी न्यायालय में सुनवाई का अधिकार होता है। महान्यायवादी को उसकी निजी प्रैक्टिस पर रोक स्थापित नहीं की गयी है, बशर्ते कि वह भारत सरकार के विरुद्ध न तो सलाह दे और न ही उसके विरुद्ध वकालत करे।
भारत का नियंत्रक-महालेखा परीक्षक
स्वतंत्र लेखा परीक्षा की व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र का एक आवश्यक उपादान है। भारत में यह कार्य नियंत्रक महालेखा परीक्षक को सौंपा गया है, जो संघ तथा राज्यों की सभी वित्तीय प्रणालियों का नियंत्रण करता है। भारतीय संविधान के भाग के अनुच्छेद 148-151 में इसका विशद विवेचन किया गया है। यह सार्वजनिक धन का संरक्षक तथा भारत की संपरीक्षा और लेखा प्रणालियों का निष्पक्ष प्रधान होता है। संविधान में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का पद भारत शासन अधिनियम, 1935 के अधीन महालेखा परीक्षक के नमूने के आधार पर बनाया गया है।
अनुच्छेद 148 के अनुसार भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिमंडल की सलाह पर की जाती है। संविधान में यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि नियंत्रक महालेखा परीक्षक की पदावधि एवं सेवा शतों का निर्धारण संसद द्वारा किया जायेगा इस अधिकार का प्रयोग करते हुए संसद ने 1953 ई. में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (सेवा एवं शत) अधिनियम पारित किया था, जिसमें 1976 में संशोधन करके निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं। संघीय कार्यपालिका
1. नियंत्रक महालेखा परीक्षक का कार्यकाल 6 वर्ष का होगा, लेकिन वह यदि अपनी पदावधि को पूरा करने के पहले ही 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तो वह पदमुक्त हो जाता है। वह राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकता है। उसे महाभियोग द्वारा अपने पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग की प्रक्रिया वही होगी, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के लिए विहित है।
2. उसका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य होगा।
3. सेवा मुक्त होने पर वह भारत सरकार के अधीन कोई लाभ का पद ग्रहण नहीं करेगा।।
4. उसका वेतन भारत की संचित निधि से दिया जाएगा।
कार्य एवं शक्तियां:
अनुच्छेद 149 से 151 के अन्तर्गत नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों और शक्तियों का उल्लेख किया गया है, जो निम्न हैं
1. वह भारत तथा प्रत्येक राज्य और प्रत्येक संघ राज्य क्षेत्र की संचित निधि से किए जाने वाले सभी व्यय की समीक्षा करेगा तथा इस संबंध में यह प्रतिवेदन देगा कि क्या ऐसा व्यय विधि के अनुसार है।
2. वह संघ तथा राज्यों की आकस्मिक निधि तथा सार्वजनिक लेखाओं के लिए किये जाने वाले सभी व्यय की समीक्षा करेगा तथा उनपर प्रतिवेदन देगा।
3. वह संघ तथा राज्य के विभिन्न विभागों द्वारा किये गये व्यापार तथा विनिमय के लाभ तथा हानि लेखाओं की समीक्षा करेगा और उसपर प्रतिवेदन देगा।
4. वह संघ तथा राज्य की प्रत्येक आय और व्यय को संपरीक्षा करेगा, जिससे उसको यह समाधान हो जाए कि राजस्व के निर्धारण, संग्रहण तथा समुचित आवंटन के लिए पर्याप्त परीक्षण करने के बाद नियम और प्रक्रियाएं बनायी गयी हैं।
5. संघ और राज्य के राजस्वों द्वारा पर्याप्त रूप से वित्तपोषित सभी निकायों और प्राधिकारियों की, सरकारी कम्पनियों की, अन्य निगमों या निकायों की, जब ऐसे नियमों या निकायों से संबंधित विधि द्वारा यह अपेक्षित हो, प्राप्ति और व्यय की संपरीक्षा करेगा और उस पर प्रतिवेदन देगा।
इसके अतिरिक्त नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का एक और महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व यह है कि वह सरकारी लेखा खाताओं में अतिव्यय होने की स्थिति में मितव्ययिता की दृष्टि से लोक लेखा समिति को इससे अवगत कराये। अनुच्छेद 151 के अनुसार नियंत्रक-महालेखा परीक्षक संघीय खातों से सम्बद्ध प्रतिवेदनों को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है और राज्यों के लेखाओं संबंधी प्रतिवेदनों को राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति और राज्यपाल उसको क्रमशः संसद और राज्य विधान मंडल के समक्ष रखाते हैं। संघीय कार्यपालिका
नियंत्रक-महालेखा परीक्षक का उत्तरदायित्व करदाता के हितों को भी सुरक्षित रखना है। भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को “राष्ट्रीय वित्त का संरक्षक” कहा जाता है। भारत में नियंत्रक महालेखा परीक्षक भारत की सचित निधि से धन के निर्गम पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकता। इसके पदनाम से तो पता चलता है कि वह नियंत्रक और लेखा परीक्षक दोनों का कार्यभार संभालता है, किंतु अभी तक नियंत्रक-महालेखा परीक्षक केवल लेखा परीक्षक का ही कर्तव्य निभा रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन का नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के लोकधन की प्राप्ति और उसके निर्गम का भी नियंत्रण करता है।
मंत्रिपरिषद् का आकार
मंत्रिपरिषद् को सीमित रखने संबंधी वां संविधान संशोधन विधेयक 16 दिसंबर, 2003 को लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया। इस संशोधन के द्वारा केंद्र और राज्यों में मंत्रिपरिषद् के आकार को सदन की संख्या के अनुरूप कर दिया गया है। केंद्र में यह लोकसभा की कुल सदस्पता का 15 प्रतिशत तथा अन्य बड़े राज्यों में यह सदन की कुल संख्या का 15 प्रतिशत होगी। जबकि छोटे राज्यों में मंत्रिपरिषद् को न्यूनतम संख्या 12 होगी, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं। संघीय कार्यपालिका
मंत्रिपरिषद् के आकार को सौमित रखने का प्रावधान करने का | उपर्युक्त निर्णय न्यायमूर्ति एम.एन बैंकटचलैक की अध्यक्षता वाले संविधान समीक्षा आयोग की संस्तुतियों पर लिया गया है। आयोग ने | मंत्रियों की संख्या लोकसभा व विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य | संख्या के दस प्रतिशत तक सीमित रखने की संस्तुति की थी। परंतु प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित संसदीय समिति की सिफारिश पर इसे 15 फीसदी कर दिया गया।
मंत्रिपरिषद बनाम मंत्रिमंडल
मंत्रिपरिषद
- यह एक वृहत् निकाय है, जिसमें 60 से 70 मंत्री होते है।
- इसमें मंत्रिमंडल स्तर के मंत्री, राज्य मंत्री तथा उपमंत्री- तीनों प्रकार के मंत्री शामिल हैं।
- यह सरकार के क्रियाकलपों को पूरा करने के लिए एक निकाय के रूप में बैठक नहीं करती। इसका कोई सामूहिक कृत्य नहीं है।
- इसे सिद्धांत रूप में समस्त शक्तियां प्राप्त हैं।
- इसके कृत्यों का निर्धारण मंत्रिमंडल करता है।
- यह मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों का क्रियान्वयन करती है।
- यह संविधान के अनुच्छेद 74 व अनुच्छेद 75 में विस्तार से वर्णित साविधानिक निकाय है।
- इसके आकार व वर्गीकरण का यद्यपि संविधान में उल्लेख नहीं है|
- समय की मांग तथा परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुरूप इसका आकार प्रधानमंत्री निर्धारित करता है।
- इसका त्रिस्तरीय निकाय के रूप में वर्गीकरण संसदीय प्रकार की सरकार की परंपराओं पर आधारित है, जैसा कि ब्रिटेन में विकसित हुआ है।
- हालांकि इसे विधायिका का अनुमोदन प्राप्त है। अत: 1952 का वेतन व भत्ता अधिनियम मंत्री’को’जिस किसी नाम से भी बुलाया जाए, उपमंत्रियों से युक्त मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में’ पारिभाषित करता है।
- यह संसद के निम्न सदन (लोकसभा) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है।
मंत्रिमंडल
- यह एक लघु निकाय है, जिसमें 15 से 20 मंत्री होते हैं।
- इसमें केवल मंत्रिमंडल स्तर के मंत्री ही शामिल हैं। अत: यह निकाय के रूप में सरकार के क्रियाकलापों को पूरा करने के लिए जल्दी-जल्दी और प्रायः सप्ताह में एक बार बैठक करती है। अत: इसके सामूहिक कृत्य हैं।
- यह व्यवहार में मंत्रिपरिषद की शक्तियों का प्रयोग करता है और इसलिए यह मंत्रिपरिषद की ओर से कार्य करता है।
- नीतिगत निर्णय लेकर यह मंत्रिपरिषद को निर्देश देता है, जो निर्णय सभी मंत्रियों पर बाध्यकारी होते हैं।
- अपने निर्णयों की मंत्रिपरिषद द्वारा क्रियान्वयन की यह निगरानी करता है।
- 1978 में 44वें संशोधन अधिनियम के द्वारा अनुच्छेद 352 में मंत्रिमंडल शब्द सम्मिलित किया गया। संविधान के मूल पाठ में इसे स्थान नहीं दिया गया था। अभी भी अनुच्छेद 352 में मंत्रिमंडल को केवल परिभाषित करता है- ‘परिषद् अनुच्छेद 75 द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के स्तर के अन्य मंत्रियों से मिलकर इस प्रकार अनुच्छेछ 352(3) में इसकी शक्तियों व कृत्यों का उल्लेख नहीं है। दूसरे शब्दों में, हमारी संसदीय प्रकार की सरकार की परंपराओं पर आधारित है, जैसा कि ब्रिटेन में विकसित हुआ
- यह संसद के निम्न सदन (लोकसभा)के प्रति मंत्रिपरिषद् के सामूहिक उत्तरदायित्व को क्रियान्वित करता है।
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