संघ और राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के नाम तथा प्रत्येक के अन्तर्गत आने वाले राज्य क्षेत्रों का वर्णन प्रथम अनुसूची में किया गया है। इस समय इस अनुसूची में 28 राज्य तथा 8 संघ राज्य क्षेत्र सम्मिलित हैं|
संघ और राज्य क्षेत्र : Union and Territories
अनुच्छेद-1 में निर्धारित किया गया है कि भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा। भारत के राज्य क्षेत्र में (i) राज्यों के राज्य क्षेत्र (1) संघ राज्य क्षेत्र (iii) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जायें; यथा भारत में पांडिचेरी, कारिकल, माही और यनम (फ्रांसीसी) और गोवा, दमन और दीव और दादरा तथा नागर हवेली (पुर्तगाली) जैसे पुर्तगाली तथा फ्रांसीसी क्षेत्र समाविष्ट होंगे, जो भारत में उनके विधित: अंतरण के बाद 1962 में 14वें, 12वें और 10वें संविधान संशोधनों के द्वारा संघ में जोड़ दिए गये थे।
भारत एक ‘संघ’ है, इस बात पर बल देने का प्रयोजन इस तथ्य को प्रकाश में लाना था कि यह संघटक इकाइयों के बीच किसी सौदेबाजी या समझौते का परिणाम नहीं है, बल्कि यह संविधान सभा की एक स्पष्ट घोषणा है। इसलिए कोई भी राज्य संघ से अलग नहीं हो सकता और नही अपनी मर्जी से संविधान की प्रथम अनुसूची में निर्धारित अपने राज्य क्षेत्र में परिवर्तन कर सकता है। संघ और राज्य क्षेत्र
अनुच्छेद 2 में कहा गया है कि संसद विधि द्वारा, निबंधनों और शों पर जो वह ठीक समझे, भारत संघ में नये राज्यों का प्रवेश या उसकी स्थापना कर सकती है। संसद ने 36वें संविधान संशोधन द्वारा 1975 में सिक्किम को नवीन राज्य के रूप में भारत में जोड़ा। ऐसा सिक्किम विधान सभा के अनुरोध पर और जनमत संग्रह के द्वारा सिक्किम के लोगों की स्वीकृति से किया गया था।
अनुच्छेद 3 के अधीन संसद को किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी रान्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नये राज्य का निर्माण करने की शक्ति प्राप्त है। यह किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा या घटा सकती है और यहां तक कि किसी राज्य की सीमाओं में या उसके नाम में भी परिवर्तन कर सकती है। इस प्रकार किसी राज्य की क्षेत्रीय अखण्डता अथवा उसके अस्तित्व में बने रहने की कोई गारंटी नहीं है। अत: कहा जा सकता है कि भारत नाशवान राज्यों का अविनाशी संघ है। संघ और राज्य क्षेत्र
अनुच्छेद 3 से संबंधित विधेयक को संसद में पेश करने से पूर्व उस पर राष्ट्रपति की सहमति आवश्यक है। संसद में पेश किए जाने के पहले राष्ट्रपति अपनी अनुमति देने के पूर्व विधेयक को सम्बन्धित रान्य विधानमंडल को भेजता है। राज्य विधानमंडल द्वारा अनुमोदन करने या न करने दोनों ही स्थितियों में राष्ट्रपति विधेयक को संसद में पेश करने की अनुमति देता है। हालांकि संविधान में नये राज्य क्षेत्रों के अर्जन, नये राज्यों के प्रवेश तथा निर्माण आदि का उपबंध किया गया है|
इसमें भारतीय राज्य क्षेत्र अलग करने या अंतरित करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, बेरूबाड़ी राज्य क्षेत्र के भाग को पाकिस्तान को अंतरित करने के लिए नौवां संविधान संशोधन करना पड़ा था। संघ और राज्य क्षेत्र
अनुच्छेद 4 में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अनुच्छेद 2 और 3 के अधीन नये राज्यों की स्थापना या उनके प्रवेश और विद्यमान राज्यों के नामों, क्षेत्रों और उनकी सीमाओं आदि में परिवर्तन के लिए बनायी गयी विधियां अनुच्छेद 368 के अधीन संविधान संशोधन नहीं मानी जाएंगी। अर्थात इन्हें बिना किसी विशेष प्रक्रिया के तथा किसी भी अन्य साधारण विधान की तरह साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता है।
देशी रियासतों का एकीकरण स्वतंत्रता के समय भारतीय राज्य क्षेत्र दो भागों में विभक्त था-ब्रिटिश भारत और देशी रियासता ब्रिटिश भारत में प्रांत थे जबकि देशी रियासतों की संख्या 600 थी, जिनमें 542 को छोड़कर शेष पकिस्तान में शामिल हो गयीं। 539 रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में अपना विलय कर लिया, जबकि जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय कराने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। संघ और राज्य क्षेत्र
संघ और राज्य क्षेत्र में ही जूनागढ़ रियासत को जनमत संग्रह के आधार पर तब भारत में मिलाया गया, जब उसका शासक पाकिस्तान भाग गया। हैदराबाद की रियासत को सैन्य कार्यवाही करके भारत में मिलाया गया और जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक ने पाकिस्तानी कबाइलियों के आक्रमण के कारण विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके अपनी रियासत को भारत में मिलाया।
देशी रियासतों का भारत में विलय तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता और साहसपूर्ण कूटनीतिक प्रयासों के कारण संभव हो पाया। यही कारण है कि पटेल को ‘भारत का बिस्मार्क’ भी कहा जाता है। ब्रिटिश प्रांत व देशी रियासतों का एकीकरण करके भारत में चार प्रकार के राज्यों का गठन किया गया। ये राज्य थे –
(1)’ए’ श्रेणी के राज्यः
ब्रिटिश भारत के प्रांतों के साथ 216 देशो रियासतों को सम्मिलित करके ‘ए’ श्रेणी के राज्यों का गठन किया गया। ये राज्य थे- असम, बिहार, बम्बई, मध्य प्रदेश, मद्रास, उड़ीसा, पंजाब, संयुक्त प्रति, पश्चिम बंगाल, आंध्रा इनकी संख्या 10 थी।
(2) ‘बी’ श्रेणी के राज्य:
275 देशी रियासतों को नयी प्रशासनिक इकाई में गठित करके ‘बी’ राज्य की श्रेणी प्रदान की गयी। ये राज्य थेहैदराबाद, जम्मू- कश्मीर, मध्य भारत, मैसूर, पेप्सु, राजस्थान, सौराष्ट्र, ट्रावनकोर, कोचीन। इसकी संख्या 8 थी।
(3) ‘सी’ श्रेणी के राज्य:
61 देशी रियासतों को स्वीकृत करके ‘सी’ राज्य की श्रेणी में रखा गया। ये राज्य थे अजमेर, बिलासपुर, भोपाल, दुर्ग, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा तथा विंध्य प्रदेश। इनकी संख्या 10 थी।
(4) ‘डी’ श्रेणी के राज्य :
अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह को ‘डी’ राज्य की श्रेणी में रखा गया।
भाषायी आधार पर राज्य का पुनर्गठन
भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान भी भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन की मांग की जाती रही थी। सर्वप्रथम 1912 में भाषायी आधार पर तीन राज्यों बिहार, उड़ीसा तथा असम का गठन किया गया था। स्वतंत्र भारत में संविधान के द्वारा राज्यों का श्रेणियों में विभाजन तत्कालीन उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया गया था, किन्तु सभी इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं थे और वे भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग कर रहे थे। संघ और राज्य क्षेत्र
संघ और राज्य क्षेत्र के अंतर्गत 1 अक्टूबर, 1953 को भाषायी आधार पर आंध्र प्रदेश राज्य की स्थापना के पश्चात, भाषा के आधार पर नये राज्यों के पुनर्गठन की मांग भड़क उठी। इस समस्या के शांतिपूर्ण हल के लिए 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गयी। इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति फजल अली थे तथा आयोग के अन्य सदस्य थे-के. एम. पणिक्कर तथा हृदय नाथ कुंजरू।
संविधान निर्माण के पश्चात ही 27 नवम्बर, 1947 को संविधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद द्वारा सेवा निवृत्त न्यायाधीश एस. के. दर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग का गठन किया गया था, जिसे इस बात की जांच-पड़ताल का कार्य सौपा गया था कि भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं। इस आयोग ने प्रशासनिक आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की संस्तुति की थी। संघ और राज्य क्षेत्र
फजल अली की अध्यक्षता में गठित आयोग ने 30 दिसम्बर को अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी। राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में आयोग ने निम्न सिफारिश की थी
(1) केवल भाषा और संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं किया जान चाहिए।
(2) राज्यों का पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय एवं प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
(3) ए., बी. और सी. वर्गों में विभाजित राज्यों को समाप्त कर दिया जाये तथा इनकी जगह पर 16 राज्यों तथा तीन केन्द्रशासित प्रदेशों का निर्माण किया जाये।
संसद ने इस आयोग की सिफारिशों को कुछ परिवर्तनों के साथ स्वीकार कर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के अन्तर्गत भारत में 14 राज्य और 5 कंन्द्रशासित प्रदेश थे। जिन चौदह राज्यों का उल्लेख था, वे हैं- आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, बम्बई,जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल। पांच केन्द्रशासित प्रदेश थेदिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह। संघ और राज्य क्षेत्र
बाद में राज्यों के पुनर्गठन
1956 में फांस की सरकार के साथ हस्तांतरण संधि द्वारा चन्द्रनगर, माहे, यनम और कारिकल को भारत में सम्मिलित किया गया। इन सभी को मिलाकर छठे केन्द्र शासित प्रदेश ‘पाण्डिचेरी’ का गठन किया गया। गोवा मुक्ति संग्राम की उग्रता के कारण भारत सरकार ने 1961 में सैन्य हस्तक्षेप करके गोवा, दमन, दीव को जीतकर भारत में मिला लिया। इसे सातवां केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया। आठवां संघ और राज्य क्षेत्र के अंतर्गत केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख बना|
बम्बई प्रांत में दो भाषा-भाषियों (मराठी तथा गुजराती) के पारस्परिक संघर्ष के कारण बम्बई को विभाजित करके 15वें राज्य गुजरात का गठन किया गया। 1962 में नागालैंड का गठन हुआ तथा 1966 में पंजाब से काटकर हिन्दी भाषी राज्य हरियाणा बनाया गया । संघ और राज्य क्षेत्र
1971 में हिमाचल प्रदेश तथा मेघालय को राज्य का दर्जा दिया गया। 1975 में सिक्किम का राज्य बना। 1986 में अरुणाचल प्रदेश तथा मिजोरम को पूर्ण राज्य तथा 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। 2000 में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार को विभाजित करके तीन नये राज्यों क्रमशः छत्तीसगढ़, उत्तरांचल और झारखण्ड बनाये गये। वर्तमान में भारतीय संघ में 28 राज्य और 8 संघ राज्य क्षेत्र शामिल है। संघ और राज्य क्षेत्र
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इन्हें भी पढ़ें –
- नागरिकता | Citizenship [Part-1]
- संवैधानिक इतिहास | Constitutional History [Part-3]
- संवैधानिक इतिहास | Constitutional History [Part-2]
- संवैधानिक इतिहास | Constitutional History[Part-1]
- संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Constitution [Part-2]
- संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Constitution [Part-1]
- संविधान का निर्माण | Making of Constitution
- भारत के संविधान का विकास | Evolution of the Constitution of India