संविधान की मुख्य विशेषताएं भारतीय संविधान के स्वरूप निर्धारण में कई तत्वों का योगदान रहा है। इनमें कुछ महत्वपूर्ण तत्व इस प्रकार हैं- भारतीय समाज का स्वरूप, स्वतंत्रता आन्दोलन का लक्ष्य और आदर्श, संविधान सभा का स्वरूप और संविधान निर्माण के समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति। भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और समूहों के लोग शामिल हैं और बहुत से वर्ण और जनजाति समूह हैं।
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संविधान की मुख्य विशेषताएं
आर्थिक असमानता भी व्यापक रूप से है। इन्हीं तत्वों को ध्यान में रखकर संविधान की प्रस्तावना में ही धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, समानता और समाज के कमजोर वर्गों के संरक्षण जैसे सिद्धांतों पर बल दिया गया है। भारत की स्वतंत्रता के समय भारत में ब्रिटेन शासित विभिन्न प्रकार के प्रांत थे और साथ ही देशी रियासतें भी थीं। संविधान निर्माण के दौरान इन्हीं विभिन्नताओं में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया गया। कुछ आदर्शों को स्थापित किया गया, जिसका मुख्य लक्ष्य था सामाजिक-आर्थिक सुधार तथा देश की एकता और अखण्डता को सुनिश्चित करना। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संविधान की मुख्य विशेषताओं की चर्चा में कुछ समस्याएं सामने आती हैं। संविधान में इसकी घोषणा नहीं की गयी है। इनकी व्युत्पत्ति का आधार संविधान के प्रावधान और संस्थागत ढांचा हैं। संविधान की कौन-सी मूल मुख्य विशेषताएं हैं, इस पर अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं, फिर भी भारतीय संविधान के कुछ लक्षण हैं, जिन्हें मुख्य विशेषता माना जा सकता है। भारतीय संविधान की यही विशेषताएं विश्व की अन्य संविधानों से इसकी अलग पहचान बनाती हैं। संविधान की मुख्य विशेषताएं
विभिन्न स्त्रोतों पर आधारित संविधान
संविधान निर्माताओं में एक सर्वोत्तम संविधान की रचना करने की प्रेरणा इतनी प्रबल थी कि उन्होंने विभिन्न देशों के संविधानों के प्रावधानों और संस्थाओं को पूर्णतया ध्यान में रखा। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935, भारतीय संविधान का सबसे बड़ा स्त्रोत था, क्योंकि करीब दो-तिहाई प्रावधान इसी से लिए गये हैं।
संविधान में ग्रेट ब्रिटेन से जिन प्रावधानों को लिया गया वे थे- संसदीय सरकार की व्यवस्था, विधि निर्माण की प्रक्रिया, विधायिका के अध्यक्ष का पद और एकल नागरिकता संघीय व्यवस्था अमरीकी संस्थाओं से ग्रहण की गयी। अमेरिकी संविधान के कई अन्य मुख्य तत्वों को भी भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है, जैसे- संविधान की सर्वोच्चता, स्वतंत्र न्यायपालिका, न्यायिक पुनरावलोकन, निर्वाचित राज्याध्यक्ष, राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया, संविधान संशोधन की प्रक्रिया में राज्यों का विधायिकाओं द्वारा अनुमोदन । संविधान के तीसरे भाग में वर्णित मूल अधिकार अमेरिका के संविधान के बिल ऑफ राइट्स’ के समान हैं। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संविधान में नीति निर्देशक तत्व (भाग-IV) आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। राष्ट्रपति के चुनाव प्रक्रिया तथा राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में सदस्यों का मनोनयन भी आयरलैंड के संविधान से ही प्रेरित है। भारतीय संघ प्रणाली कनाडा के संविधान से प्रेरित है। गणतांत्रिक व्यवस्था फ्रांसीसी संविधान से प्रेरित है तथा आपातकालीन उपबंध जर्मन संविधान से लिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 245-255 के अन्तर्गत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची का प्रेरणा स्त्रोत आस्ट्रेलिया की संघीय व्यवस्था है।
अनुच्छेद 21 में वर्णित “विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया ” जापान के संविधान के प्रावधान के समान है। 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के भाग IV ( क) में जोड़ा गया मूल कर्त्तव्य का प्रेरणा स्त्रोत रूस है, तो संविधान में संशोधन की प्रक्रिया को दक्षिण अफ्रीका के संविधान से लिया गया है। अन्य देशों के संविधानों से इन्हीं समानताओं के कारण भारतीय संविधान की कई आलोचकों ने आलोचना भी की है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संविधान को ‘उधार लिया हुआ’, ‘जोड़-जाड़ का काम’, ‘पश्चिम की दासवत् नकल’ और ‘लोगों की प्रतिभा के उपयुक्त नहीं इन संज्ञाओं द्वारा आलोचना की गयी। इन आलोचनाओं के बावजूद जब हम पाते हैं कि संविधान निर्माताओं ने विभिन्न देशों से जो कुछ भी अपनाया, उनमें भारतीय चरित्र के अनुकूल आवश्यक संशोधन भी किया। विभिन्न प्रावधानों के सम्मिश्रण ने भारतीय संविधान को एक अनन्य स्वरूप प्रदान किया। ये संस्थाएं संविधान सभा में विकासित आदर्शों और वचबद्धताओं के सर्वथा अनुकूल
विशाल संविधान
भारतीय संविधान अब तक किसी भी देश में बना सबसे लम्बा संविधान है। भारतीय संविधान के 22 भागों, 395 अनुच्छेदों और आठ अनुसूचियों को पारित करने में संविधान सभा को लगभग तीन वर्ष लगे। संविधान कई कारणों से लम्बा हो गयाः
(i) विस्तृत प्रशासनिक उपबंधों को सम्मिलित किया जाना ।
(ii) दूसरे देशों के विचार और संस्थाएं, जो आकर्षक लगी, उनका समावेश करना।
(iii) दो ऐसी संस्थाओं का ढांचा, जिनका समन्वय करना पड़ा, वे थे ब्रिटेन और अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्थाएं संसदीय तथा अध्यक्षीय व्यवस्था के साथ समन्वय तथा संघीय व्यवस्था और एकात्मक व्यवस्था का समन्वय भी आवश्यक था।
(iv) इकाइयों (राज्यों) के संविधान को भी सम्मिलित किया जाना।
(v) जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, सिक्किम आदि के लिए विशेष प्रावधान किया जाना।
(vi) मूल अधिकार, मूल कर्त्तव्य, नीति निर्देशक सिद्धांतों को सम्मिलित किया जाना।
वस्तुतः संविधान निर्माताओं ने कोई भी ऐसी कमी नहीं छोड़नी चाही, जो बाद में समस्या बन जाये। भारत के आकार, इसकी जटिलताओं तथा विविधताओं के कारण ही देश के कतिपय क्षेत्रों अथवा जनता के वर्गों के लिए अनेक विशेष, अस्थायी, संक्रमणकालीन और विविध उपबंध आवश्यक हो गये। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संविधान के वृहद आकार के कारण ही संविधान विशेषज्ञ आइवर जेनिंग्स ने भारतीय संविधान को एक कठोर संविधान बताया है। लेकिन अबतक इसमें 90 से अधिक संशोधन हो चुके हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान अमेरिका, आस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड के संविधानों की तरह कठोर नहीं है। साथ ही यह ब्रिटेन की व्यवस्था की तरह लचीली भी नहीं है। वर्तमान में भारतीय संविधान में 440 से अधिक अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां हैं।
कठोर एवं लचीलेपन का समन्वय
संविधान एक जीवंत दस्तावेज है और उसे समाज की बदलती हुई सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढालना होता है। संशोधन की प्रक्रिया द्वारा संविधान अपने आपको बदली हुई परिस्थिति में अनुकूलन करता है एक लिखित विस्तृत संविधान, संघीय व्यवस्था और मूल अधिकारों का प्रावधान ये भारतीय संविधान को एक कठोर संविधान के लक्षण प्रदान करते हैं।
भारतीय संविधान में संशोधन की तीन प्रक्रियाएं अपनायी गयी हैं। संविधान के लगभग 36 अनुच्छेद ऐसे हैं, जिनका संशोधन संसद में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के सामान्य बहुमत से पारित होता है। इनमें प्रमुख हैं- राज्यों के नाम और उनकी सीमाओं में फेरबदल, राज्यों में विधान परिषद का निर्माण एवं समाप्ति, संसदीय विशेषाधिकार का संहिताकरण, राष्ट्रपति, राज्यपाल, उच्च तथा उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते का निर्धारण आदि यह प्रक्रिया बहुत ही आसान और लचीली है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
दूसरी प्रक्रिया में संशोधन के लिए दोनों सदनों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। यह संशोधन संसद के प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों के बहुमत के साथ-साथ सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से कम नहीं होना चाहिए। संविधान के भाग 3 और भाग 4 सहित अधिकतर अनुच्छेदों पर यह प्रक्रिया लागू होती है।
संशोधन की तीसरी प्रक्रिया काफी कठिन है। इसके लिए ऊपर वर्णित विशेष बहुमत के अतिरिक्त आधे से अधिक राज्यों की विधायिकाओं द्वारा अनुमोदन आवश्यक है इस प्रक्रिया द्वारा संशोधित होने वाले प्रावधानों है राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया, केन्द्र और राज्यों के कार्यकारी अधिकार, सातवीं अनुसूची में परिवर्तन, संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व और अनुच्छेद 368 जिसमे संशोधन की प्रक्रिया का प्रावधान है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संघात्मक तथा एकात्मक व्यवस्था का समन्वय
भारतीय संविधान में एक संघीय व्यवस्था के सभी लक्षण हैं- लिखित संविधान, संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन, स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की सर्वोच्चता तथा उच्च सदन का राज्य सदन होना। लेकिन संविधान निर्माताओं ने कहीं भी संघात्मक (Federation) शब्द का प्रयोग नहीं किया है। भारत को अनुच्छेद में राज्यों का संघ (Union of States) कहा गया है। राज्यों का संघ पर जो बल दिया गया है, वह कई प्रावधानों में परिलक्षित होता है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
केन्द्र की पहल पर नये राज्यों का निर्माण, राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्र द्वारा केन्द्र की आपातकालीन शक्तियां, इकहरी नागरिकता, अवशिष्ट शक्तियों पर केन्द्र का अधिकार आदि कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो भारतीय संविधान के एकात्मक होने की पुष्टि करती हैं। इन्हीं प्रावधानों को देखते हुए कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था से अधिक एकात्मक व्यवस्था लक्षण पाये जाते हैं। संविधान की मुख्य विशेषताएं
प्रसिद्ध विद्वान के.सी. व्हीलर का मत है कि भारतीय संविधान ‘अर्द्धसंघीय’ है। इसे संरचना में परिसंघीय किन्तु भावना में एकात्मक, सामान्य स्थिति में परिसंघीय, किन्तु आपात स्थिति के दौरान पूर्णतया एकात्मक रूप में परिवर्तित किया जा सकने वाला कहा गया है। वस्तुतः भारतीय संविधान को परिसंघीय या एकात्मक के किसी कठोर ढांचे में कसन कठिन है, क्योंकि इसमें दोनों का ही कुशल समन्वय हुआ है।संविधान की मुख्य विशेषताएं
परिसंघ की अनिवार्य विशेषताएं
संविधान की कठोरता :यह विशेषता संविधान की सर्वोपरिता का ही तार्किक निष्कर्ष है। कठोरता का तात्पर्य संविधान की अंशोधनीयता नहीं है, अपितु इसका सीधा अभिप्राय यह है कि संविधान के संशोधन की शक्ति, विशेषतः वे जो संघीय सरकार व राज्य सरकारों के दर्जे व शक्तियों का नियमन करती है, को मात्र संघीय सरकार या मात्र राज्य सरकारों तक सीमित नहीं होना चाहिए। संविधान की मुख्य विशेषताएं
शक्तियों का वितरण : केंद्र सरकार तथा संघ की विभिन्न घटक इकाइयों की सरकारों के मध्य शक्तियों का वितरण परिसंघीय संविधान की अनिवार्य विशेषता है।
लिखित संविधान : संविधान को अनिवार्यत लिखित रूप में होना चाहिए। इससे मूलतः संविधान की सर्वोपरिता के संबंध में किसी संशय का निराकरण तो होता ही है, साथ ही साथ केंद्र सरकार व राज्य सरकारों में मध्य शक्तियों की स्पष्ट रूप से विभाजन भी होता है।
न्यायालयों का प्राधिकार : एक ऐसा प्राधिकरण अवश्य होना चाहिए, जो संघीय सरकार व राज्य सरकारों को एक दूसरे की शक्तियों की सीमा में प्रवेश करने से रोक सके। द्वितीय, एक अंतिम सर्वोच्च न्यायालय होना चाहिए, जो संघीय सरकार या राज्य सरकारों पर आश्रित न हो और संविधानिक मामलों से संबंद्ध विषयों में जिसका कथन अंतिम हो। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संविधान की सर्वोपरिता : संघीय सरकार तथा राज्य सरकारों पर संविधान बाध्यकारी होता है। केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को भी संविधान से ही शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसके साथ ही, दोनों सरकारों में से कोई भी सरकार इस स्थिति में नहीं होती कि वह प्रत्येक को प्राप्त शक्तियों व दर्जे से संबंधित संविधान के प्रावधानों का अतिक्रमण कर सके।
संविधान की मुख्य विशेषताएं : संविधान की मुख्य विशेषताएं : संविधान की मुख्य विशेषताएं : संविधान की मुख्य विशेषताएं
संविधान की प्रमुख विशेषताएं से संबंधित प्रश्न
भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता क्या है
भारत के संविधान की विशेषताएं कक्षा 12
भारतीय संविधान की दो विशेषताएं बताइए
संविधान की विशेषताएं Drishti IAS
संविधान की चार विशेषताएं लिखिए
संविधान की पांच विशेषताएं लिखिए
संविधान की विशेषताएं PDF
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- संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Constitution [Part-2]
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