संविधान की मुख्य विशेषताएं भारतीय संविधान के स्वरूप निर्धारण में कई तत्वों का योगदान रहा है। इनमें कुछ महत्वपूर्ण तत्व इस प्रकार हैं- भारतीय समाज का स्वरूप, स्वतंत्रता आन्दोलन का लक्ष्य और आदर्श, संविधान सभा का स्वरूप और संविधान निर्माण के समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थिति। भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और समूहों के लोग शामिल हैं और बहुत से वर्ण और जनजाति समूह हैं। संविधान की मुख्य विशेषताएं
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संविधान की मुख्य विशेषताएं
भारतीय संविधान संसदीय प्रणाली की सरकार की व्यवस्था करता है। यद्यपि भारत एक गणराज्य है और उसका अध्यक्ष राष्ट्रपति होता है, किन्तु यह मान्यता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के विपरीत भारतीय राष्ट्रपति कार्यपालिका का केवल नाममात्र का या संवैधानिक अध्यक्ष होता है। वह मंत्रिपरिषद की सहायता तथा उसके परामर्श से ही कार्य करता है। संसदीय शासन व्यवस्था में वास्तविक शासन की शक्ति प्रधानमंत्री के हाथ में होती है और वही सरकार का मुखिया होता है प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के सदस्य संसद में बहुमत दल के सदस्य होते हैं। कार्यकारी अधिकार मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री के पास होता है।
संसदीय शासन
संसदीय सरकार व्यवस्था में विधायिका और कार्यपालिका अधिकारों का विलयीकरण होता है। राष्ट्रपति मात्र संवैधानिक अध्यक्ष है और प्रधानमंत्री सरकार का अध्यक्ष है। इस प्रणाली में कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी रहती है और उनका विश्वास खो देने पर कार्यपालिका को त्यागपत्र दे देना होता है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
यद्यपि भारत ने अमरीका की अध्यक्षीय प्रणाली की जगह इंग्लैंड की संसदीय प्रणाली को स्वीकार किया है, परंतु भारतीय संसदीय प्रणाली में ब्रिटेन से कई मूलभूत भिन्नताएं हैं जैसे कि ब्रिटेन का संविधान एकात्मक है, जबकि भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण भी पाये जाते हैं। वहां वंशानुगत राजा वाला राजतंत्र है, जबकि भारत निर्वाचित राष्ट्रपति वाला गणतंत्र है। ब्रिटेन के विपरीत भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है। भारतीय संसद प्रभुत्व सम्पन्न नहीं है, क्योंकि इसके द्वारा पारित विधान का न्यायिक पुनरीक्षण का प्रावधान भी संविधान में मौजूद है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय
भारतीय संविधान की एक विशेषता यह है कि संविधान में ब्रिटेन की संसदीय प्रभुता तथा अमेरिका की न्यायिक सर्वोच्चता में समन्यव का प्रयास किया गया है। ब्रिटेन में विधायिका सर्वोच्च है तथा ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को किसी भी न्यायालय में किसी भी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके विपरीत अमेरिकी के संविधान में न्यायपालिका की सर्वोच्चता के सिद्धांत को अपनाया गया है अर्थात न्यायालय संविधान का रक्षक और अभिभावक है।
किन्तु भारतीय संविधान संसद तथा न्यायालय दोनों को ही अपने क्षेत्रों में सर्वोच्च स्थान प्रदान करता है। जहां उच्चतम न्यायालय संसद द्वारा पारित किसी कानून को संविधान का उल्लंघन करने वाला बताकर उसे अवैध और अमान्य घोषित कर सकता है, वहीं संसद कतिपय प्रतिबंधों के अधीन रहते हुए संविधान के अधिकांश भागों में संशोधन कर सकती है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
मूल अधिकार
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में व्यक्ति की प्रतिष्ठा’ पर बल दिया गया है। इसी उद्देश्य से नागरिकों को कुछ मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये राज्य के विरुद्ध व्यक्ति के ऐसे अधिकार हैं, जिनका अतिक्रमण नहीं हो सकता। ये अधिकार हैं- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार यहां यह उल्लेखनीय है कि 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से निकाल दिया गया।
अब सम्पत्ति का अधिकार अनुच्छेद 300 (ए) के अन्तर्गत केवल कानूनी अधिकार है। मूल अधिकारों को संवैधानिक गारंटी प्राप्त होती है और यदि उसका उल्लंघन होता है तो नागरिक सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है। अधिकारों को केवल संवैधानिक संशोधन के द्वारा ही वापस लिया जा सकता है। लेकिन ये अधिकार असीमित नहीं हैं, क्योंकि इनपर कुछ युक्तियुक्त प्रतिबंध भी लगाए गये हैं। सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता तथा कुछ विशिष्ट वर्गों के हित में इसकी कुछ सीमाएं निर्धारित की गयी हैं। संविधान की मुख्य विशेषताएं
मूल कर्त्तव्य
1976 में 42 वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग-4 (अ) जोड़ा गया, जिसमें नागरिकों के दस कर्तव्यों की सूची दी गयी है। यद्यपि मूल अधिकारों की तरह इन कर्तव्यों के लिए न्यायालय के अनुसमर्थन की गारंटी नहीं है, फिर भी नागरिकों के कर्त्तव्य पालन और मूल अधिकारों की दृष्टि से इनका अपना महत्व है। ये नागरिकों के पथ निर्देशक आदर्श हैं।
नीति-निर्देशक सिद्धांत
आयरलैंड के संविधान से प्रेरित होकर तैयार किए गये राज्य नीति निर्देशक तत्व हमारे संविधान की एक खास विशेषता है। ये न्याय योग्य नहीं हैं। नीति-निर्देशक सिद्धांत कल्याणकारी राज्य के आदर्शों की उपलब्धि के लिए विधायिका और कार्यपालिका का नीति निर्माण में पथ प्रदर्शन करते हैं। इनमें आर्थिक और सामाजिक न्याय तथा विश्वशांति के सिद्धांत शामिल हैं। नीति निर्देशक तत्वों का नैतिक आधार है और वे राष्ट्रीय विवेक के प्रतीक हैं, जिन्हें भारतीय राज्य को सदैव ध्यान में रखना पड़ेगा। संविधान के अनुसार नीति-निर्देशक सिद्धान्त देश के शासन के लिए मूलभूत सिद्धान्त हैं, जिन्हें राज्य को कोई भी कानून बनाते समय ध्यान में रखना आवश्यक होगा। संविधान की मुख्य विशेषताएं
आपातकालीन प्रावधान
संविधान के भाग 18 के नौ अनुच्छेद राष्ट्रपति को आपातकालीन अधिकार प्रदान करते हैं। तीन स्थितियों में राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर सकता है- (1) युद्ध, बाहय आक्रमण, अथवा सशस्त्र विद्रोह (2) राज्यों में संविधान की विफलता तथा (3) आर्थिक संकट के समय आपातकालीन स्थिति का राज्यों के अधिकार और मूल अधिकारों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः आपातकालीन समय में भारतीय सरकार का केंद्रीकरण हो जाता है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
स्वतंत्र न्यायपालिका तथा न्यायिक पुनरावलोकन
स्वतंत्र न्यायपालिका संघीय व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। इस व्यवस्था में न्यायपालिका का एक प्रमुख कार्य संविधान का संरक्षण है। इस तरह विधायिका के कानून बनाने के अधिकार का न्यायपालिका संविधान की दृष्टि से पुनरावलोकन कर सकती है। न्यायपालिका की दृष्टि में अगर विधायिका द्वारा पारित कोई कानून या कार्यपालिका के आदेश संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध है, तो वह उसे निरस्त कर सकती है। इसको न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार कहते हैं। उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार जिन स्थितियों में प्राप्त है, वे हैं-
(1) केन्द्र और राज्य के बीच टकराव
(2) विधायिका द्वारा पारित ऐसे कानून जो संविधान के अनुकूल नहीं हैं।
(3) मूल अधिकारों का संरक्षण।
(4) उन प्रावधानों की व्यवस्था और स्पष्टीकरण जिनके बारे संशय और मतभेद हो ।
वयस्क एवं सार्वजनिक मताधिकार
डा. अम्बेदकर ने संविधान सभा में कहा था “संसदीय प्रणाली से हमारा अभिप्राय एक वोट से है।” भारतीय संविधान निर्माताओं ने सभी नागरिकों को मताधिकार देने का प्रावधान रखा है। जाति, लिंग, धर्म, शिक्षा, क्षेत्र, व्यवसाय, आय, कर आदि के आधार पर मताधिकार देना स्वीकार नहीं किया। सभी भारतीय नागरिक जिन्होंने एक निश्चित आयु प्राप्त कर ली है, उन्हें मताधिकार दिया गया है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
प्रारंभ में मताधिकार की आयु 21 वर्ष थी, किन्तु बाद में 61 वें संविधान संशोधन द्वारा 18 वर्ष कर दी गयी है। अतः वयस्क मताधिकार का अर्थ है वह भारतीय नागरिक जिसने कम से कम 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है, उसे मत देने का अधिकार है तथा सार्वजनिक का अभिप्राय बिना किसी भेदभाव के सभी वयस्क नागरिकों को मत देने का अधिकार है।
एकल नागरिकता
संविधान निर्माताओं ने एक एकीकृत तथा अखण्ड राष्ट्र का निर्माण करने के अपने लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, संघीय संरचना होने के बावजूद केवल इकहरी नागरिकता का उपबंध रखा। अमेरिका के विपरीत, संघ तथा राज्यों के लिए कोई पृथक नागरिकता नहीं रखी गयी और समूचे देश में (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के एक से अधिकार प्रदान किए गये हैं। इस एकल नागरिकता का यह भी तात्पर्य है कि कोई भी भारतवासी किसी भी निर्वाचन क्षेत्र से संसद के लिए चुनाव लड़ सकता है।
समाजवादी व्यवस्था
भारतीय संविधान में समाजवादी तत्व पहले से ही सम्मिलित थे खासकर संविधान के भाग-4 में, फिर भी इसे अधिक महत्व प्रदान करने के लिए ‘समाजवादी’ शब्द संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में सम्मिलित किया गया। समाजवाद शब्द का अर्थ अत्यंत व्यापक है, फिर भी समाजवाद का मूल अभिप्राय आर्थिक शोषण को समाप्त करना है। भारतीय सन्दर्भ में समाजवाद का अभिप्राय राज्य के उस समाजवादी ढांचे से सम्बन्धित नहीं है, जिसमें उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है। भारतीय सन्दर्भ में समाजवाद लोकतांत्रिक विचारधारा पर आधारित समाजवाद है अर्थात् भारत के विभिन्न वर्गों में असमानता समाप्त करके आर्थिक एवं सामाजिक शोषण को समाप्त करना है। संविधान की मुख्य विशेषताएं
धर्मनिरपेक्ष राज्य
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष तत्व पहले से ही मौजूद थे खासकर संविधान के भाग-3 में, फिर भी इसे अधिक महत्व प्रदान करने के लिए 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को जोड़ा गया। धर्मनिरपेक्ष राज्य का तात्पर्य यह है कि राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान होंगे तथा राज्य के द्वारा विभिन्न धर्मावलम्बियों में भेदभाव नहीं किया जायेगा, भारत किसी भी धर्म को राष्ट्रीय धर्म घोषित नहीं करेगा तथा भारतीय सरकार धार्मिक विषयों में विवेकपूर्ण निर्णय करेगी। संविधान की मुख्य विशेषताएं
लोकतंत्रात्मक राज्य
भारत में ब्रिटेन के लोकतंत्र के अनुरूप लोकतंत्र की स्थापना की गयी। लोकतंत्रात्मक शब्द का अभिप्राय यह है कि सरकार की शक्ति का स्त्रोत जनता में निहित है। भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना की गयी। संविधान के निर्माताओं ने केवल राजनीतिक लोकतंत्र की ही स्थापना नहीं की, बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना का भी प्रण लिया। भारत में ऐसे लोकतंत्र की स्थापना की गयी है, जिसमें कोई विशेष वर्ग नहीं होगा तथा सत्ता किसी विशेष वर्ग के हाथ में नहीं होगी।
भारत का संविधान एक व्यापक दस्तावेज है। इसकी अनूठी विशेषताओं के कारण इसे किसी खास मॉडल में फिट नहीं किया जा सकता है। यह अनम्य तथा नम्य, परिसंघीय एवं एकात्मक, और अध्यक्षीय तथा संसदीय रूपों का सम्मिश्रण है। इसके अलावा यह संसदीय प्रभुत्व तथा न्यायिक सर्वोच्चता के सिद्धान्तों के बीच एक मध्य मार्ग उपलब्ध कराता है। संक्षेप में भारतीय संविधान की सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनाए गये अनेक देशों के संविधान लुढ़क गये तथा लुप्त हो गये, वहीं हमारे संविधान ने अनेक संकटों का सफलतापूर्वक सामना किया है और वह जीवित रहा है।
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भारत के संविधान की विशेषताएं कक्षा 12
संविधान की प्रमुख विशेषताएं से संबंधित प्रश्न
भारतीय संविधान की सबसे बड़ी विशेषता क्या है
भारतीय संविधान की दो विशेषताएं बताइए
संविधान की विशेषताएं Drishti IAS
संविधान की चार विशेषताएं लिखिए
संविधान की पांच विशेषताएं लिखिए
संविधान की विशेषताएं PDF
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