1857 का विद्रोह होने के कई कारण थे जिनमे राजनैतिक कारण, सैन्य कारण, सामाजिक, धार्मिक व प्रशासनिक कारण, तात्कालिक कारण, विद्रोह का प्रारंभ व प्रसार, विद्रोह के महत्वपूर्ण केन्द्र, उनके नेता व दमन की स्थिति बनने इन सभी का सम्मिलित होना इत्यादि|
1857 का विद्रोह के कारण
राजनैतिक कारण:
- डलहौजी द्वारा व्ययगत सिद्धांत के अंतर्गत सतारा (1858), जैतपुर, संबलपुर, बघाट (1850), उदयपुर (1852), झांसी (1853) और नागपुर (1854) आदि राज्यो पर कब्जा करना।
- बाद में बघाट और उदयपुर पर किए गए अधिकार को रद्द करना और उसे पुनः वहां के शासको को लौटा दिया गया।
- सर जेम्स आउट्रम, जो 1854 से अवध का ब्रिटिश रेजीडेंट था, की रिपोर्ट के आधार पर अवध का विलय कर लिया गया।
- अवध के विलय के बाद वहाँ का रेजीडेंट हेनरी लारेन्स को बनाया गया।
- डलहौजी ने कर्नाटक के नवाब एवं तंजौर के राजा की उपाधि समाप्त कर दी और 1851 में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु के बाद उसके दत्तक पुत्र नाना साहेब (धांधू पंडित) को पेंशन देने से इंकार कर दिया।
- मुगल शासक के उत्तराधिकारी के रूप में फकीरुद्दीन को मान्यता, किन्तु उसकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के पद पेंशन आदि सम्मानो पर रोक लगाना।
- 1856 की घोषणा के अनुसार बहादुरशाह के उत्तराधिकारी सम्राटो के बदले शहजादो के नाम से जाने जाएंगे।
सैन्य कारण:
- भारतीय और अंग्रेज सैनिको का अनुपात 5:1 था।
- उनके वेतनमान एवं पदोन्नति में भेदभाव तथा योग्यता के बावजूद वे अधिकतम सूबेदार पद तक ही जा सकते थे।
- 1856 में कैनिंग के समय समान्य सेवा भर्ती अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा सैनिको को किसी भी स्थानपर समुद्र पार भी जाने की आज्ञा दी गई, जो उनकी समाजिक, धार्मिक मान्यताओ के खिलाफ थे।
- सैनिको को अब पत्र-व्यवहार के लिए भी डाक टिकट (स्टाम्प) लगाना पड़ता था। 1857 का विद्रोह
सामाजिक, धार्मिक व प्रशासनिक कारण:
- भारतीयों को इसाई मिशनरियो के कार्यो एवं उनको ब्रिटिश सरकार द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा एवं प्रोत्साहन के कारण भय था।
- सरकार द्वारा शुरु किए गए समाज सुधार और मानवतावादी कार्य जैसे कि सती प्रथा की समाप्ति (1829), विधवा पुनर्विवाह का वैधिकरण, पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार इत्यादि के कारण रुढ़िवादी एवं सनातनी लोगों की नाराजगी।
- मंदिरो, धार्मिक संस्थानो, मस्जिदो इत्यादि की जमीनो पर कर लगाने की सरकारी नीति से असंतोष।
तात्कालिक कारण:
- जनवरी 1857 अंग्रेजो द्वारा नई एनफील्ड राइफल का प्रयोग करना, जिसमें कारतूसो (गाय और सुअर की चर्बी से निर्मित) का प्रयोग करना। इन कारतूसो को राइफल में भरने से पहले इसके चर्बीदार भाग को दांत से काटना होता था, जिससे सिपाहियों के अंदर असंतोष की भावना पैदा हुई।
- इस राइफल के प्रयोग का प्रशिक्षण दमदम, सियाल कोट, अम्बाला में दिया जाता था।
विद्रोह का प्रारंभ व प्रसार
- 23 जनवरी 1857 को दमदम के सैनिको ने कारतूसो को अस्वीकार किया।
- 26 फरवरी 1857 को बहरामपुर की 19 नेटिव इनफैंट्री के सैनिको ने चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग से इंकार कर दिया। इस समय यहाँ का कामांडिंग ऑफिसर कर्नल मिचेल था।
- 24 मार्च 1857 को बैरकपुर में 34 नेटिव इनफैंट्री के सिपाही मंगल पाण्डे ने विद्रोह कर दिया। उसने कमांडिंग ऑफिसर जनरल हियरसे के सहयोगी लेफ्टिनेंट बौग को बुरी तरह से घायल कर दिया। मंगल पाण्डे को 8 अप्रैल 1857 को मृत्यु दण्ड दे दिया गया और इनफैंट्री को समाप्त कर दिया गया।
- 24 अप्रैल 1857 को 3 नेटिव इनफैंट्री के 90 सैनिको ने विद्रोह कर दिया और 9 मई को इनमें से 85 लोगो को 10 साल की सजा सुनाई गई।
- लखनऊ की 7 अवध रेजिमेंट ने 2 मई 1857 को विद्रोह किया, जिसे बाद में समाप्त कर दिया गया।
- 10 मई को मेरठ के कई सैनिक रेजीमेंट ने बगावत कर दी और अपने कई साथियों को कैद से छुड़ा लिया। शीघ्र ही 11 एवं 20 नेटिव इनफैंट्री के सिपाहियों ने इनके साथ मिलकर विद्रोह में भाग लेते हुए कुछ अंग्रेज अधिकारियों की हत्या (जिसमें 11 नेटिव इनफैंट्री का कर्नल फिनिस भी था) करके, दिल्ली की तरफ चल दिए।
- मेरठ का कमांडिंग ऑफिसर जनरल हेविट विद्रोहियों को समझाने में असफल रहा। 11 मई 1857 को मेरठ के सिपाहियो का दिल्ली में आगमन हुआ और बहादुरशाह द्वितीय को भारत का बादशाह घोषित किया। दिल्ली के शास्त्रीनगर का अधिकारी लेफ्टिनेंट विलोबी था, जिसे हराकर सैनिको ने शस्त्र लूटे और कंपनी के राजनैतिक एजेन्ट साइमन फ्रेजर को मार दिया गया।
- पंजाब के कुछ स्थानो पर विद्रोह की शुरुआत हुई, लेकिन पंजाब के मुख्य आयुक्त सर जॉन लॉरेंस द्वारा शीघ्र दबा दिया गया। उन्होने पूरे विद्रोह काल में पंजाब में शांति बनाए रखी, इस तरह सिख सेना ने विद्रोह को दबाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इन विद्रोह में हैदराबाद के निजाम सलारजंग, ग्वालियर के सिंधिया तथा जमीनदारो ने अंग्रेजो का साथ दिया। इन राजाओ तथा नवाबो से संतुष्ट कैनिंग ने कहा कि “ये हमारे लिए तरंग रोधी साबित हुए, नहीं तो 1857 का तूफान हमें बहा ले जाता|” 1857 का विद्रोह
विद्रोह के महत्वपूर्ण केन्द्र, उनके नेता व दमन
दिल्ली:
- इसका नेतृत्व बहादुरशाह द्वितीय (मनोनीत नेता) एवं जनरल बख्त खान (बरेली में ब्रिटिश सेना का सूबेदार और दिल्ली में विद्रोही सैनिको का नेतृत्व) ने किया।
- जनरल जॉन निकलसन ने सितंबर 1857 में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया, लेकिन युद्ध में लगे घावो के कारण, वह मर गया।
- लेफ्टिनेंट हडसन से सम्राट के उत्तराधिकारियों की हत्या कर दी और बहादुरशाह द्वितीय को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया। 1857 का विद्रोह
कानपुर:
- इसका नेतृत्व नाना साहेब (धांधू पंडित) और राव साहेब (नाना का भतीजा) ने किया।
- यहाँ अंग्रेजो को सर ह्यूज व्हीलर के नेतृत्व में शिकस्त मिली, जिसने 27 जून को नाना के समक्ष इलाहाबाद में आत्मसमर्पण किया (27 जून को अंग्रेज पुरुषो की हत्या कर दी गई एवं 15 जुलाई को सभी अंग्रेज स्त्री एवं बच्चो की कुछ समय कैद के बाद हत्या कर दी गई।
- 17 जुलाई में जनरल हैवलॉक ने नाना को हराकर कानपुर पर पुनः अधिकार कर लिया (ब्रिगेडियर जनरल नील ने कई भारतीयों को मारकर 27 जून की घटना का बदला लिया)।
- नवंबर 1857 में तात्या टोपे के अधीन ग्वालियर की विद्रोही टुकड़ी ने कानपुर पर अधिकार किया तथा दिसंबर 1857 में सर कॉलीन कैम्पबेल ने कानपुर पर निर्णायक अधिकार कर लिया (वह अगस्त 1857 में भारतीय सेना का कमांडर- इन-चीफ बना)।
लखनऊ:
- इसका नेतृत्व हजरत महल (अवध की बेगम) और अहमदउल्लाह (अवध के पूर्व नवाब का परामर्शदाता) ने किया।
- 2 जुलाई 1857 को लखनऊ के ब्रिटिश रेजिडेंसी पर अधिकार कर लिया गया तथा सर हेनरी लॉरेंस मारा गया।
- 25 दिसंबर 1857 को हैवलॉक, आउट्रम तथा नील की सेना ने लखनऊ की तरफ आगमन किया। तात्या टोपे के नेतृत्वमें चिनहट के पास अंग्रेजी सेना परास्त हुई। हैवलॉक भी मारा गया और कालान्तर में कर्नल नील भी मारा गया।
- 21 मार्च 1858 को सर कैम्पबेल द्वारा लखनऊ पर निर्णायक अधिकार हुआ।
बरेली:
5 मई 1858 को कैम्पबेल द्वारा इस पर पुनः अधिकार कर लिया गया।
बनारस एवं इलाहाबाद:
कर्नल नील द्वारा 1857 में इन पर पुनः अधिकार कर लिया गया।
झांसी व ग्वालियरः
- इसका नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया, जिसका साथ तात्या टोपे ने दिया।
- 4 अप्रैल 1858 को सर ह्यूज रोज ने झांसी पर पुनः अधिकार कर लिया, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई बच कर निकल गई। ग्वालियर पर रानी लक्ष्मीबाई तथा तात्या टोपे ने अधिकार कर लिया।
- 17 जून 1858 को रानी की मृत्यु हो गई और 20 जून 1858 को ह्यूज रोज ने ग्वालियर पर पुनः अधिकार कर लिया।
- ह्यूज रोज ने कहा की रानी लक्ष्मीबाई सभी विद्रोहियों में एक मात्र मर्द थी|
- सुभद्रा कुमारी चौहान ने रानी झांसी नामक गीत लिखा।
जगदीशपुर/आरा:
- इसका नेतृत्व कुंवर सिंह (70 वर्षीय, बिहार के जगदीशपुर का बेदखल जमींदार) और अमरसिंह (कुंवर सिंह का भाई) ने किया।
- विलियम टेलर एवं विंसेंट इयर द्वारा कुवंर सिंह के नेतृत्व वाले बिहार आंदोलन का अगस्त 1857 में अस्थायी रुप से दमन किया गया, जहाँ से कुंवर सिंह अवध के लिए बच निकला।
- अप्रैल 1858 में कुंवर सिंह अपनी अंतिम लड़ाई लड़ने के लिए बिहार वापस आया और 9 मई को उसकी मृत्यु हो गई।
1857 के विद्रोह के विफलता के कारण
- संगठित आधार का मजबूत न होना।
- राजाओ व नवाबो का अंग्रेजो के साथ होना।
- नियत तिथि पर एक साथ विद्रोह न होना।
- संगठन, अनुशासन, सामूहिक योजना, केन्द्रीय नेतृत्व का अभाव, नेताओ की गुटबंदी व आधुनिक हथियारो की कमी।
- बंगाल, बंबई, मद्रास, पश्चिमी पंजाब तथा राजपूतो द्वारा विद्रोह में भाग न लेना, आधुनिक शिक्षित भारतीय भी इसमें शामिल नहीं थे।
- अंग्रेजो के मजबूत बिन्दु – विशाल भंडार, उच्च कोटि के सैनिक हथियार एवं तकनीक, योग्य नेतृत्व।
- नाना साहेब, खान बहादुर और बेगम हजरत महल नेपाल चले गए।
- जनरल बख्त खान दिल्ली के पतन के बाद अवध चला गया और 13 मई 1859 को अंग्रेजो के साथ युद्ध में मारा गया।
- जून 1858 में पुवैन के राजा द्वारा मौलावी अहमदउल्लाह की हत्या कर दी गई।
- रानी लक्ष्मीबाई को युद्ध में वीर गति प्राप्त हुई।
1857 का विद्रोह : 1857 का विद्रोह : 1857 का विद्रोह : 1857 का विद्रोह : 1857 का विद्रोह : 1857 का विद्रोह
1857 का विद्रोह
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