संघीय कार्यपालिका संविधान के भाग के अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय कार्यपालिका का विस्तार से वर्णन किया गया है संघीय कार्यपालिका के अन्तर्गत राष्ट्रपति के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी सम्मिलित होते हैं।
संघीय कार्यपालिका | Federal Executive
महाभियोग की प्रक्रिया
अनुच्छेद-61 के अनुसार राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया “संविधान के उल्लंघन” के आरोप पर ही चलायी जा सकती है। महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है। इसे संसद के किसी भी सदन में शुरू किया जा सकता है। संसद का कोई भी सदन राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगा सकता है तथा दूसरा सदन उन आरोपों की जांच करता है या करवाता है। ऐसा आरोप तब तक नहीं लगाया जा सकता जब तक कि निम्न शते पूरा न हो
(1) जिस सदन में महाभियोग का संकल्प पेश किया जाना हो, उसके एक-चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित आरोप पत्र राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व दिया जाना आवश्यक है।
(2) जिस सदन में संकल्प पेश किया जाये, उसकी सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से संकल्प पारित न कर दिया जाये।
संकल्प पारित हो जाने के बाद वह दूसरे सदन को भेजा जाता है, जो आरोपों की जांच करता है। राष्ट्रपति को ऐसी जांच में उपस्थित होने या अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होता है। यदि दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगे आरोपों को सही पाता है तथा अपनी संख्या के बहुमत से तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पहले सदन द्वारा पारित संकल्प का अनुमोदन कर देता है, तो महाभियोग की कार्यवाही पूर्ण हो जाती है। संकल्प पारित किये जाने की तिथि से ही राष्ट्रपति पदव्युत समझा जाता है।
राष्ट्रपति के स्वविवेक से निर्णय के अवसर
सविधान के अनुसार राष्ट्रपति का दायित्व है कि वह मंत्रिपरिषद को परामर्श से कार्य करे, फिर भी कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं, जब वह अपने स्वविवेक से निर्णय लेता है
(i) जब ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि किसी भी दल को लोकसभा सदस्यों के बहुमत का स्पष्ट समर्थन प्राप्त न हो, तब राष्ट्रपति नये प्रधानमंत्री की नियुक्ति में स्वविवेक से कार्य करता है।
(ii) प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु से उत्पन्न स्थिति में, तथा ।
(iii) ऐसी मंत्रिपरिषद की सलाह पर लोकसभा का विघटन, जिसने
लोकसभा में बहुमत का समर्थन गंवा दिया हो या जिसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित कर दिया गया हो
राष्ट्रपति की शक्तियां तथा अधिकार
कार्यपालिका शक्तियां:
अनुच्छेद 53 के अनुसार संघीय कार्यपालिका की सभी शक्तियां राष्ट्रपति में निहित हैं और वह अपनी इन शक्तियों का प्रयोग अपने अधीनस्थ प्राधिकारियों के माध्यम से करता है। राष्ट्रपति की कार्यपालिका संबंधी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिमंडल के माध्यम से किया जाता है।
1976 से पूर्व संविधान में यह स्पष्ट उपबंध नहीं था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद द्वारा दिये गये परामर्श के अनुसार कार्य करने को बाध्य है। 42वें संविधान संशोधन, 1976 के अनुच्छेद 74(1) का संशोधन करके यह स्थिति स्पष्ट कर दी गयी है- “राष्ट्रपति को अपनी सहायता और परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में इनके परामर्श के अनुसार कार्य करेगा।”
राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- मंत्रिपरिषद का गठन, नियुक्ति संबंधी एवं आयोगों के गठन संबंधी।
(i) मंत्रिपरिषद का गठनः अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति, संघ की कार्यपालिका शक्ति के संचालन में परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद का गठन करता है। सामान्यतः राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता हो। प्रधानमंत्री के परामर्श पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों (मंत्रियों) की नियुक्ति करता है। प्राय: यह परंपरा रही है कि प्रधानमंत्री लोकसभा का सदस्य होता है, क्योंकि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल किसी ऐसे व्यक्ति को अपना नेता चुनता है, जो संसद का सदस्य नहीं है तो राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है, लेकिन इस प्रकार नियुक्त किए गये व्यक्ति को 6 महीने के अन्दर संसद का सदस्य बन जाना पड़ता है। इसी तरह प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल कर सकता है, जो संसद सदस्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति को भी 6 महीने के अन्तर्गत संसद के किसी सदन का सदस्य बनना पड़ता है।
लोकसभा में बहुमत दल के संदर्भ में कुछ विशेष स्थिति भी हो सकती है जैसे कि लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिला हो या फिर अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने के कारण मंत्रिपरिषद त्याग पत्र दे चुका हो, तो राष्ट्रपति किस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करेगा, इस संदर्भ में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। यहां पर राष्ट्रपति अपने विवेकाधिकार से ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त कर सकता है, जिसके संबंध में उसे विश्वास हो कि वह लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध कर सकता है।
इस विशेषाधिकार के प्रयोग से राष्ट्रपति ने 1979 में चरण सिंह, 1989 में वी. पी. सिंह, 1991 में पी. वी. नरसिंह राव, 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी तथा एच. डी. देवगौड़ा तथा 1997 में इन्द्रकुमार गुजराल को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया था। इसी प्रकार 1998 में 13वीं लोकसभा के गठन के बाद राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया है। न्यायिक निर्णय (चरण सिंह मामला) के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति के संदर्भ में वह पूर्ववर्ती शर्त नहीं है कि लोकसभा में नियुक्ति के पहले विश्वास मत प्राप्त किया जाये।
(ii) नियुक्ति संबंधी शक्ति: संविधान द्वारा राष्ट्रपति को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां करने और पदमुक्त करने का अधिकार दिया गया है। प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के अतिरिक्त राष्ट्रपति निम्नलिखित उच्च पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है- भारत का महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यों के राज्यपाल, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्य, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, महिला आयोग के अध्यक्ष, अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य ….. आदि।
(iii) आयोगों का गठनः राष्ट्रपति को कार्यपालिका संबंधी अधिकारों के अन्तर्गत आयोगों के गठन का अधिकार भी दिया गया है। इन आयोगों की नियुक्ति विभिन्न विषयों पर की जाती है। इन आयोगों में प्रमुख हैं- वित्त आयोग, अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन पर प्रतिवेदन देने के लिए आयोग, राजभाषा आयोग, पिछड़े वर्ग की दशाओं का अन्वेषण करने के लिए आयोग …. आदि।
(2) राजनयिक शक्तियां:
अन्य देशों के साथ भारत का संव्यवहार राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में राष्ट्रपति भारत का प्रतिनिधित्व करता है। अन्य देशों में भेजे जाने वाले राजदूतों या उच्चायुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा अन्य देशों से भारत में नियुक्ति पर आने वाले राजदूतों या उच्चायुक्तों का स्वागत भी राष्ट्रपति द्वारा ही किया जाता है। समस्त अन्तर्राष्ट्रीय करार और संधियां राष्ट्रपति के नाम से की जाती हैं। राष्ट्रपति अपनी राजनयिक शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है।
(3) सैन्य शक्तियां:
संघ के रक्षा बलों का समावेश राष्ट्रपति में निहित होता है। वह भारत की तीनों सेनाओं जल, थल और वायु सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है। इन सेनाओं के प्रमुखों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है। राष्ट्रपति को युद्ध या शांति की घोषणा करने या रक्षा बलों को अभिनियोजित करने की शक्ति है। राष्ट्रपति अपनी सैन्य शक्ति का प्रयोग भी मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है।
(4) विधायी शक्तियां:
संविधान द्वारा राष्ट्रपति को अनेक महत्वपूर्ण विधायी शक्तियां प्राप्त हैं। राष्ट्रपति की विधायी शक्तियों को निम्न भागों में बांटा जा सकता है
(i) संसद से संबंधित शक्तियां: राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है, क्योंकि संसद का गठन राष्ट्रपति और लोकसभा तथा राज्यसभा से मिलकर होता है। संसद संबंधित निम्न कार्य वह करता है
1. राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का अधिवेशन बुलात है, सत्रावसान
करता है तथा लोकसभा को भंग करता है- गतिरोध उत्पन होने की स्थिति में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने की शक्ति भी उसे प्राप्त है। वह लोकसभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करता है।
2. वह लोकसभा में एंग्लो-इण्डियन समुदाय के दो सदस्यों तथा राज्यसभा में साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक विषयों के विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 सदस्यों की नियुक्ति करता है।
3. संसद सदस्य की अयोग्यता का प्रश्न उठता है, तो इस पर निर्णय राष्ट्रपति द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाता है।
4. किसी लम्बित विधेयक के संबंध में या किसी अन्य विषय के संबंध में वह किसी भी सदन को संदेश भेज सकता है और उसके संदेश पर यथाशीघ्र कार्यवाही आवश्यक होती है।
5. राष्ट्रपति कुछ प्रतिवेदनों और कधनों को संसद के समक्ष रखवाता है जैसे-वार्षिक वित्तीय विवरण (बजट), वित्त आयोग की सिफारिश, पिछड़े वर्ग आयोग का प्रतिवेदन आदि।
6. संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना कानून का रूप नहीं ले सकता है।
(ii) विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी: निम्नलिखित विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश या पूर्व मंजूरी के बिना संसद में पेश नहीं किए जा सकते-
1. नये राज्यों के निर्माण या वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन संबंधी विधेयक।
2. धन विधेयका
3. जिस कराधान से राज्य का हित हो, उस कराधान पर प्रभाव डालने
वाले विधेयका
4. व्यापार की स्वतंत्रता पर निबंधन अधिरोपित करने वाले
राज्य विधेयका
(iii) राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी जाने वाली विधि के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तिः 1. यदि रान्य विधान मंडल कोई ऐसा विधेयक पारित करता है, जिससेउच्च न्यायालय की अधिकारिता प्रभावित होती है, तो राज्यपाल उस विधेयक पर अनुमति नहीं देगा तथा उसे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित कर देगा।
2. राज्य विधान मंडल द्वारा सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए पारित विधेयक को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आरक्षित रखा जायेगा।
3. किसी राज्य के अन्दर दूसरे राज्यों के साथ व्यापार आदि पर प्रतिबंध लगाने वाले विधेयकों को विधान सभा में पेश करने से पहले राष्ट्रपति की पूर्वानुमति अनिवार्य है।
4. वित्तीय आपात स्थिति के प्रर्वतन की स्थिति में राष्ट्रपति निर्देश दे सकता है कि सभी धन विधेयकों को राज्यसभा में पेश करने से पहले उनपर राष्ट्रपति का अनुमोदन लिया जाये।
विधेयक जिन पर राष्ट्रपति की पूर्व अनुशंसा आवश्यक होती है
कुछ विधेयक ऐसे हैं, जिन्हें केवल राष्ट्रपति की अनुशंसा पर ही संसद में लाया जा सकता है।
- यथाकिसी राज्य की सीमाओं अथवा नाम को परिवर्तित करने हेतु विधेयक (अनुच्छेद 3)।
- धन विधेयक, जिनकी विस्तृत सूचना अनुच्छेद 110 में है।
- वित विधेयक (प्रथम श्रेणी), जिनका संबंध यद्यपि अनुच्छेद 110 से हो, परंतु उसमें अन्य प्रावधान भी हों।
- जो यद्यपि साधारण विधेयक हैं,परंतु जिनमें भारत की संचित निधि से धनाहरण किया जाना है, ऐसे विधेयक पर विचार किया जा सकता है और विधेयक के पारित होने के प्रक्रिया में इसे ‘द्वितीय वाचन’ कहते हैं।
- अनुच्छेद 31A से संबंधित विधान।
- कर-आरोपण की वस्तुओं से संबंधित कोई भी विधेयक, जिसमें राज्यों की रुचि है. अथवा कृषि आय इत्यादि को पुनः पारिभाषित करने के लिए लाया गया विधेयक।
- राज्य विधेयक, जो व्यापार, वाणिज्य आदि की स्वतंत्रता को बाधित करते हों (अनुच्छेद 19(1)g)
- जिन विधेयकों पर राष्ट्रपति की पूर्व अनुशंसा आवश्यक है, उनकी सांविधानिकता पर न्यायालय में कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता, भले ही विधान में किए जाने के बाद उन पर राष्ट्रपति की अनुशंसा मिले या न मिले।
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