संघीय कार्यपालिका संविधान के भाग के अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय कार्यपालिका का विस्तार से वर्णन किया गया है संघीय कार्यपालिका के अन्तर्गत राष्ट्रपति के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी सम्मिलित होते हैं।
संघीय कार्यपालिका | Federal Executive
(iv) राष्ट्रपति की वीटो की शक्तिः
संसद द्वारा पारित किसी भी विधेयक को अधिनियम बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो। जब दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति को निम्न तीन अधिकार होते हैं- वह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक को अनुमति देता है या वह घोषित कर सकता है कि वह विधेयक को अनुमति नहीं देता है। इसके अलावा यदि वह धन विधेयक नहीं है, तो वह विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा सकता है।
संविधान द्वारा राष्ट्रपति को स्पष्टत: वीटो की शक्ति प्रदान नहीं की गयी है, लेकिन संविधान के अनुसार किये गये कार्यों तथा स्थापित परंपराओं के अनुसार यह माना जाता है कि राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन प्रकार की वीटो शक्तियां प्राप्त हैं
1. पूर्ण या आत्यांतिक वोटो,
2. निलम्बनकारी वीटो, तथा
3. जेबी (पॉकेट) वीटो।
1. पूर्ण वीटो :
जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति नहीं प्रदान करता है, तो वह विधेयक समाप्त हो जायेगा तथा कहा जाएगा कि राष्ट्रपति ने पूर्ण वीटो की शक्ति का प्रयोग किया है। राष्ट्रपति सामान्यत: इस शक्ति का प्रयोग गैर सरकारी विधेयकों को अनुमति न प्रदान करके करता है। राष्ट्रपति इस शक्ति का प्रयोग ऐसे विधेयकों पर अनुमति न प्रदान करके भी कर सकता है, जो ऐसी सरकार द्वारा पारित किया गया हो, जो विधेयक पर अनुमति देने के पूर्व त्यागपत्र दे दे और नयी सरकार विधेयक पर अनुमति न देने की सिफारिश करे।
2. निलम्बनकारी वीटो:
जब राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनुमति देने से स्पष्ट रूप से इन्कार करने के स्थान पर विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस कर देत है, तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने निलम्बनकारी वीटो का प्रयोग किया है। पुनर्विचार के लिए वापस किया गया विधेयक यदि पुन: सामान्य बहुमत से पारित कर दिया जाता है, तो उस स्थिति में राष्ट्रपति को अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य होना पड़ता है। वस्तुतः राष्ट्रपति द्वारा विधेयक लौटाए जाने का प्रभाव निलम्बन मात्र होता है।
3.जेबी वीटो:
जब राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक पर न तो अनुमति देता है और न ही इंकार करता है अथवा न ही इसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है, विशेषकर तब जब वह पाता है कि मंत्रिमंडल का पतन शीघ्र होने वाला है, तो यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति ने जेयी वीटो का प्रयोग किया है। वस्तुतः संविधान में इसके लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गयी है कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को अपने पस कितने दिनों तक रोककर रख सकता है। इसी समय सीमा के अभाव में राष्ट्रपति जेबी वीटो की शक्ति का प्रयोग करता है।
इस वीटो का प्रयोग राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 1986 में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के संदर्भ में किया था।
(अ) न्यायिक शक्तियाँ : राष्ट्रपति को मुख्यतः तीन न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं- न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की शक्ति, क्षमादान की शक्ति तथा सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श की शक्ति।
1.न्यायाधीशों की नियुक्ति की शक्ति :
अनुच्छेद 124 के अनुसार राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति है। राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण भी कर सकता है।
अनुच्छेद 124 में यह व्यवस्था है कि उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करने के लिए राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करेगा, जिनसे परामर्श करना वह आवश्यक समझे।
2. क्षमादान की शक्ति :
संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमा तथा कुछ मामलों में दण्डादेश के निलम्बन, परिहार, लघुकरण की शक्ति प्रदान की गयी है। राष्ट्रपति को ये शक्तियां निम्न मामलों में
1. सेना न्यायालय द्वारा दिये गये दण्ड के मामले में,
2. मृत्यु दण्डादेश के सभी मामलों में तथा
3. उन सभी मामलों में जिनमें दण्ट या दण्डादेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए दिया गया है, जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है।
उच्चतम न्यायालय ने एक निर्णय में राष्ट्रपति के क्षमादान की शक्ति के संबंध में निम्नलिखित सिद्धांत प्रतिपादित किये।
1. क्षमादान के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।
2. इस शक्ति का प्रयोग केंद्रीय सरकार की सलाह पर किया जायेगा।
3. राष्ट्रपति न्यायालय के निर्णय पर विचार करके उससे अलग मत अपना सकता है।
4. राष्ट्रपति के निर्णय का न्यायिक पुनर्विलोकन मारूराम के मामले में बतायी गयी सीमा में ही किया जा सकता है। मास्राम के मामले में न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि न्यायालय यहीं हस्तक्षेप करेगा, जहां राष्ट्रपति का निर्णय अनुच्छेद 72 के उद्देश्यों से पूर्णतया असंगत या तर्कहीन या मनमाना होगा।
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति की तुलना विभिन्नताएं
राष्ट्रपति
1. राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित | सदस्य तथा राज्य की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं।
2. अभ्यर्थी होने के लिए लोकसभा की सदस्यता की योग्यता होनी | चाहिए।
3. केवल महाभियोग की प्रक्रिया से हटाया जा सकता है।
4. राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से संघ की कार्यपलिका शक्तियों| का निर्वहन करता है।
5. राष्ट्रपति को प्रतिमाह डेढ़ लाख रु. केतन मिलता है।
6. वह अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को देता है।
उपराष्ट्रपति
1. संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्यों से मिलकर निर्वाचक मंडल बिनता है। संसद के मनोनीत सदस्य भी सम्मिलित होते हैं, किन्तु राज्य विधान मंडलों के सदस्य सम्मिलित नहीं होते।
2. राज्यसभा की सदस्यता की योग्यता होनी चाहिए।
3. 14 दिन के अग्रिम नोटिस पर, राज्यसभा द्वारा प्रभावी बहुमत से | पारित संकल्प, जिसे लोकसभा में साधारण बहुमत से पारित किया गया हो, द्वारा उपराष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है।
4. उपराष्ट्रपति के कोई कार्य नहीं हैं, वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है तथा राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति के पद पर कार्य
5. उपराष्ट्रपति का कोई वेतन नहीं है। वह राज्यसभा के सभापति के रूप में 1.25 लाख रु. प्रतिमाह वेतन पाता है।
6. त्यागपत्र राष्ट्रपति को देता है।
समानताएं
1. अभ्यर्थी होने की अन्य योग्यताएं समान हैं।
2. दोनों का निर्वाचन अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की एकल | संक्रमणीय पद्धति द्वारा होता है।
3. दोनों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
3. सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श की शक्ति :
संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार जब राष्ट्रपति को ऐसा प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की सम्भावना है, जो ऐसी प्रकृति का और व्यापक महत्व का है कि उस पर सर्वोच्च न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तब वह उस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की राय मांग सकता है। राय केवल सलाह के रूप में होती है। राष्ट्रपति इसके लिए बाध्य नहीं है कि वह सर्वोच्च न्यायालय की सलाह को माने।
(v) वित्तीय शक्तियां : कोई भी विच विधेयक लेकसभा में राष्ट्रपति की अनुमति के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति की अनुमति के बिना विनीय अनुदान की मांग भी नहीं की जा सकती है। देश का वार्षिक बजट और पूरक बजट तैयार करना और उसे लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत कराना राष्ट्रपति का ही वयित्व है। देश की आकस्मिक निधि पर राष्ट्रपति का ही नियंत्रण रहता है। वह प्रत्येक पांच वर्ष की समाप्ति पर विन आयोग का गठन करता है तथा उसके द्वारा की गयी सिफारिशों को सदन के पटल पर रखवाता है। इस प्रकार राष्ट्रपति को संविधान द्वारा कई महत्वपूर्ण वित्तीय शक्तियां प्रदान की गयी हैं।
(vii) आपातकालीन शक्तियां : राष्ट्रपति को निम्नलिखित आपातकालीन शक्तियां प्रदान की गयी हैं
1. अनुच्छेद 352 के अनुसार राष्ट्रपति को युद्ध,बाह्य आक्रमण या सशस्व विद्रोह से भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में होने के आधार पर “आपत की उद्घोषणा” करने की शक्ति प्राप्त है।
2. यदि किसी राज्य में सवैधानिक तंत्र विफल हो जाये, तो अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।
3. अनुच्छेद 360 द्वारा राष्ट्रपति को वित्तीय आपात की घोषणा करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
(viii) नियम बनाने की शक्ति : राष्ट्रपति को अनेक विषयों के संबंध में नियम और विनियम बनाने का संवैधानिक अधिकार है- उदाहरण स्वरूप लोक सेवा आयोग के सदस्यों की संख्या, उनकी पदावधि और सेवा की शर्ते, संसद के संयुक्त अधिवेशन से संबंधित प्रक्रिया आदि राष्ट्रपति को अध्यादेश प्रख्यापित करने के लिए राज्यपाल को अनुदेश देने की शक्ति है,व्यापक महत्व के किसी प्रश्नको उच्चतम न्यायालय को निर्दिष्ट करने की शक्ति है, अनुसूचित क्षेत्रों एवं संघ राज्य क्षेत्रों के संबंध में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं….आदि।
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