संघीय कार्यपालिका संविधान के भाग के अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय कार्यपालिका का विस्तार से वर्णन किया गया है संघीय कार्यपालिका के अन्तर्गत राष्ट्रपति के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी सम्मिलित होते हैं।
संघीय कार्यपालिका | Federal Executive
राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति
संविधान द्वारा राष्ट्रपति को निस्संदेह बहुत व्यापक शक्तियां प्रदान की गयी है, फिर भी संसदीय शासन प्रणाली के अन्तर्गत वास्तविक कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री और उसके मंत्रिमंडल के अधीन होती हैं। डा. अम्बेदकर के अनुसार “राष्ट्रपति राज्य का मुखिया है, पर कार्यपालिका का नहीं। वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करत है, परंतु राष्ट्र का शासन नहीं चलाता है।” इस प्रकार हमारे संविधान निर्माताओं के अनुसार राष्ट्रपति राष्ट्र के केवल औपचारिक प्रधान के रूप में था।
लेकिन मूल संविधान के अनुच्छेद 74 (1) में यह प्रावधान किया गया था कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा। इसका यह अर्थ लगाया जाता था कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है और वह अपने विवेक से भी संविधान के प्रावधानों के अनुसार अपने कृत्यों का निर्वहन कर सकता है।
इसी प्रावधान के कारण प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के बीच हिन्दू कोड विधेयक आदि कई मामलों में काफी मतभेद था, जिससे दोनों के मध्य संघर्ष की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए 1976 ई. में 42वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 74(1) में संशोधन करके यह व्यवस्था की गयी कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।
इस स्थिति में थोड़ा-सा परिवर्तन 44वें संविधान संशोधन 1978 में किया गया। इस संशोधन के द्वारा राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह मंत्रिपरिषद द्वारा दी गयी किसी सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है। मंत्रिपरिषद द्वारा पुनर्विचार के बाद दी गयी सलाह पर राष्ट्रपति कार्य करने के लिए बाध्य है।वस्तुत: भारत के संविधान में राष्ट्रपति की स्थिति वही है, जो ब्रिटेन के संविधान में सम्राट की है,
अर्थात राष्ट्रपति कंवल संवैधानिक अध्यक्ष है, वास्तविक नहीं।
राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता
संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए योग्य तब होगा, जब वहः 9
(i)भारत का नागरिक हो,
(ii) पैतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
(iii) लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए योग्य हो, तथा
(iv) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन अथवा इन दोनों सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन लाभ का पद न धारण करता हो। यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रिपरिषद का सदस्य हो, तो यह नहीं माना जायेगा कि वह लाभ के पद पर है।
राष्ट्रपति के चुनाव संबंधी वाद
संविधान के अनुच्छेद 71 में उपबंध है कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी शंकाओं और विवादों का निबटारा उच्चतम न्यायालय करेगा और उसका निर्णय अतिम होगा।
राष्ट्रपति निर्वाचन की वैधता को चुनौती से संबंधित याचिका वही दायर कर सकता है जो उम्मीदवार हो अथवा निर्वाचका
1976 में डा. जाकिर हुसैन, 1969 में श्री वी.वी.गिरि तथा 1983 में श्री जैल सिंह के चुनावों को उच्चतम न्यायालय ने वैध घोषित किया। चुनाव अवैध घोषित किए जाने की स्थिति में राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उसके द्वारा किया गया कार्य या की गयो घोषणा अविधिमान्य नहीं होगी।
राष्ट्रपति पद की आकस्मिक रिक्ति से संबंधित प्रावधान
भारतीय संविधान में प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसको अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के पद के कार्यों का निर्वहन करेगा और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति दोनों के पद की आकस्मिक रिक्ति के दौरान या दोनों की अनुपस्थिति में भारत का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के पद के कृत्यों का निर्वहन करेगा।
अब तक चार उपराष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णान (डा. राजेन्द्र प्रसाद के विदेश यात्रा एवं बीमारी के कारण), वी.वी. गिरि (राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण), बी.डी. जती (राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद की मृत्यु के कारण) तथा मोहम्मद हिदायतुल्ला (राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की अनुपस्थिति के कारण) और एक मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्ला राष्ट्रपति के पद के कृत्यों का निर्वहन कर चुके हैं।
उपराष्ट्रपति
संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान में उपराष्ट्रपति पद से संबंधित प्रावधान संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया है। भारत का उपराष्ट्रपति किसी लाभ का पद धारण नहीं करता।
चूंकि वह राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है, अत: इसे मतदान का भी अधिकार नहीं है, किन्तु सभापति के रूप में निर्णायक मत देने का अधिकार उसे प्राप्त है। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में वह उसका कार्यभार (अधिकतम 6 माह तक) संभालता है और इस दौरान राष्ट्रपति के समस्त अधिकार, शक्तियां, वेतन, भते एवं अन्य सुविधाएं प्राप्त करता है।
निर्वाचनः अनुच्छेद 66 के अनुसार उपराष्ट्रपति का निर्वाचन एक ऐसे निर्वाचक मंडल द्वारा किया जायेगा, जो संसद के दोनों सदनों से मिलकर बनेगा, अर्थात राष्ट्रपति का निर्वाचन राज्यसभा तथा लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जायेगा। राज्य विधान मंडल के सदस्य उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।
राष्ट्रपति का निर्वाचन भी अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत तथा गुप्त मतदान द्वारा होता है। उपराष्ट्रपति के पद के लिए अभ्यर्थी का नाम 20 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित और 20 मतदाताओं द्वारा समर्थित होना चाहिए। ___अनुच्छेद 71 के अनुसार उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित किसी भी विवाद का निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
योग्यता: उपराष्ट्रपति के रूप में किसी व्यक्ति के निर्वाचन के लिए पात्रता की शर्ते वहीं हैं, जो राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए हैं।
पदावधि : उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पांच वर्ष तक अपने पद पर बना रहेगा और यदि उसका उत्तराधिकारी उस अवधि के अन्दर नहीं निर्वाचित होता है तो यह तब तक अपने पद पर बना रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता। इस पांच वर्ष की अवधि के पहले उपराष्ट्रपति निम्न दो प्रकार से अपने पद का त्याग सकता कर है
1. राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर।
2 राज्यसभा द्वारा संकल्प पारित करके – वह राज्यसभा के ऐसे संकल्प द्वारा हटाया जा सकता है, जिसे राज्यसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और जिसे लोकसभा की सहमति प्राप्त हो। उसे हटाये जाने के लिए महाभियोग की आवयश्कता नहीं है। राष्ट्रपति को इस आशय की सूचना 14 दिन पूर्व देना एक आवश्यक शर्त है। जब उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा होता है, तब उसे इस विधि से नहीं, बल्कि महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा ही हटाया जा सकता है।
डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दो बार उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद अब यह सामान्य परंपरा बन गयी है कि किसी व्यक्ति को एक बार ही उपराष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित किया जाये।
शपथः अनुच्छेद 69 के अनुसार उपराष्ट्रपति अपने पद की शपथ राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के द्वारा लेता
वेतन और भत्ते: उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के रूप में अपना वेतन ग्रहण करता है। उपराष्ट्रपति के समस्त वेतन एवं भत्ते संचित निधि से दिए जाते हैं।
कार्य एवं शक्तियां: उपराष्ट्रपति को संविधान द्वारा निम्नलिखित कार्य तथा शक्तियां सौंपी गयी हैं
1.राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य तथा शक्तियां:
अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के रूप में राज्यसभा के कार्यों का संचालन करता है। राज्यसभा के सभापति का कार्य लगभग लोकसभा के अध्यक्ष जैसा ही है। वह सदन में विधेयकों पर बोलने के लिए सदस्यों को आमंत्रित करता है और बहस समाप्त होने पर मतदान करवाता है तथा परिणाम घोषित करता है।
विधेयकों पर मतों की स्थिति समान होने पर अपना निर्णायक मत देता है। राज्य द्वारा पारित विधेयकों पर उसके हस्ताक्षर आवश्यक हैं। वह यह भी निर्णय करता है कि सदन में कौन से प्रश्न पूछने योग्य हैं। वह सदन में असंसदीय भाषा के प्रयोग पर रोक लगता है। वह सदन के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करता है तथा विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों का प्रताड़ित करता है।
2. कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में कार्य तथा शक्तियां:
अनुच्छेद 65 के अनुसार राष्ट्रपति की मृत्यु या उसके त्याग पत्र दे देने व महाभियोग प्रक्रिया के अनुसार उसके पदमुक्त होने या उसकी अनुपस्थिति के कारण जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, तब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन करता है तथा राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग करता है।
उपराष्ट्रपति जब राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, तो उस अवधि के दौरान वह राज्यसभा के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा।
जून 1960 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 15 दिन की सोवियत संघ की यात्रा के समय सर्वप्रथम तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करना पड़ा था। इसके पश्चात मई 1961 में डा. राजेन्द्र प्रसाद के गंभीर रूप से बीमार हो जाने के कारण दोबारा डा. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति के कार्यो का निर्वहन करना पड़ा।
तदुपरांत राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन को मृत्यु के बाद उपराष्ट्रपति वी. वी. गिरि ने राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया तथा फकरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के बाद वी. डी. जनी ने राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। ऐसा प्रतीत होता है कि यह अवधारणा करने की शक्ति कि कब राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है और कब वह अपने कर्तव्यों को पुनः ग्रहण कर लेगा, राष्ट्रपति में ही
राष्ट्रपति (कार्यों का निर्वहन) अधिनियम, 1969 के प्रावधान के अनुसार यदि मृत्यु, त्यागपत्र, हटाए जाने अथवा किसी तरह राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति दोनों के ही पद रिक्त हो जाते हैं, तो भारत का मुख्य न्यायाधीश और उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश, राष्ट्रपति पद के कार्यों का उस समय तक निर्वहन करेगा, जब तक कि नया राष्ट्रपति संविधान के प्रावधानों के अनुसार निर्वाचित होकर अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है अथवा नया उपराष्ट्रपति निर्वाचित होकर राष्ट्रपति के रूप में कार्य आरंभ नहीं कर देता है।
1969 में राष्ट्रपति डा. जाकिर हुसैन की मृत्यु के पश्चात जब उपराष्ट्रपति यी. वी. गिरि त्यागपत्र देकर राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार हो गये थे, तब मुख्य न्यायमूर्ति मुहम्मद हिदायतुल्ला ने राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन किया था।
अन्य कार्य: उपराष्ट्रपति का यह दायित्व होता है कि जब कभी उसे राष्ट्रपति का त्याग पत्र प्राप्त हो, वह उसकी सूचना लोकसभा के अध्यक्ष तक अविलम्ब पहुंचाये। अपने सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों तथा राजकीय यात्राओं में उपराष्ट्रपति राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। वह राजदूतों तथा विदेशों के विशिष्ट व्यक्तियों आदि से भेंट करता है। संविधान के अनुसार उसे कोई औपचारिक कार्यपालिका संबंधी कार्य नहीं सौंपे गये है, फिर भी व्यवहार में मंत्रिमंडल के समस्त निर्णयों की सूचना उसे दी जाती है।
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