संघीय कार्यपालिका संविधान के भाग के अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय कार्यपालिका का विस्तार से वर्णन किया गया है संघीय कार्यपालिका के अन्तर्गत राष्ट्रपति के अतिरिक्त उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उसकी मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी सम्मिलित होते हैं।
संघीय कार्यपालिका | Federal Executive
प्रधानमंत्री
संघ की कार्यपालिका का वास्तविक प्रधान प्रधानमंत्री ही होता है, अत: प्रधानमंत्री का पद बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत में ब्रिटेन के समान संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाने के कारण प्रधानमंत्री का पद और अधिक महत्व का हो गया है।
चयन तथा नियुक्तिः
प्रधानमंत्री के चयन तथा नियुक्ति के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 75 में केवल यह प्रावधान किया गया है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा। सामान्यतया राष्ट्रपति उसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करता है, जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। यदि सामान्य चुनाव में कोई भी दल बहुमत नहीं प्राप्त करता है, तो राष्ट्रपति लोकसभा में सबसे बड़े दल के नेता को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे कई दलों का समर्थन प्राप्त हो, प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त करके उससे यह अपेक्षा करता है कि वह एक महीने के अन्दर लोकसभा में अपना बहुमत साबित करे।
जब कार्यरत मंत्रिपरिषद के विरुद्ध लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तब मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति लोकसभा में विपक्ष के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है, लेकिन उसके इंकार करने पर उस व्यक्ति को जिसे कई दलों का समर्थन प्राप्त हो, सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करता है और उसे एक माह के अन्दर लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने का निर्देश देता है।
1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के त्यागपत्र देने के बाद राष्ट्रपति ने लोकसभा में विपक्ष के नेता वाई.वी. चवाण को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन उनके इंकार करने पर कई दलों का समर्थन प्राप्त करने वाले चरण सिंह को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था।
योग्यता :
प्रधानमंत्री की योग्यता के संबंध में संविधान में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, किंतु इतना अवश्य कहा गया है कि वह लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होगा। प्राय: यह माना जाता है कि प्रधानमंत्री को लोकसभा का सदस्य होने की योग्यता रखनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति लोकसभा का सदस्य नहीं है, और वह प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया जाता है, तो उसे 6 माह के अन्दर लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है।
पदावधि :
सामान्यतः प्रधानमंत्री अपने पद ग्रहण की तिथि से लोकसभा के अगले चुनाव के बाद मंत्रिमंडल के गठन तक प्रधानमंत्री पद पर बना रहता है, लेकिन इसके पहले भी वह निम्न प्रकार से पदमुक्त हो सकता है
(i) राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर, तथा
(ii) लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के पारित हो जाने पर पद त्याग करता है या राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त किया जा सकता है।
वेतन व भने: प्रधानमंत्री को प्रतिमाह वेतन मिलता है। इसके अलावा उसे आवास, यात्रा, चिकित्सा आदि की सुविधाएं मिली होती हैं।
अधिकार एवं कार्यः
प्रधानमंत्री के निम्नलिखित अधिकार एवं कार्य हैं:
(i) प्रधानमंत्री का सरकार का मुखिया होने के कारण उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य सरकार का निर्माण करना है। इस संदर्भ में अनुच्छेद 75(1) के अनुसार वह अपने मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों कि नियुक्ति करता है, उन्हें बर्खास्त करता है तथा मंत्रिमंडल से उनके
त्यागपत्र को स्वीकार करने की सिफारिश राष्ट्रपति से करता है।
(ii) वह मंत्रिमंडल के सदस्यों को विभाग का आवंटन करता है। संघ मंत्रालय में अनेक विभाग हैं, जिनकी संख्या समयानुसार परिवर्तित होती है। 15 अगस्त, 1947 को संग मंत्रालयों की संख्या 18 थी, जिसे 14 जून 2000 को बढ़ाकर 48 कर दिया गया।
(iii) अनुच्छेद 78 के अनुसार प्रधानमंत्री का वह कर्तव्य है कि वह संघ के कार्यकलापों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं की सूचना राष्ट्रपति को दे और यदि राष्ट्रपति किसी ऐसे विषय पर प्रधानमंत्री से सूचना मांगता है, तो प्रधानमंत्री सूचना देने के लिए बाध्य होगा।
(iv) प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता करता है।
(v) अनुच्छेद 74(1) के अनुसार प्रधानमंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र से मंत्रिमंडल का विघटन हो जाता है।
उपर्युक्त के अलावा प्रधानमंत्री ऐसे अनेक कार्यों को करता है, जो सरकार का मुखिया होने के कारण अनिवार्य हैं। वह योजना आयोग का अध्यक्ष भी होता है।
उप-प्रधानमंत्री का पद
भारतीय संविधान में उप-प्रधनमंत्री पद की कोई व्यवस्था नहीं है, किंतु समय-समय पर कुछ विशेष कारणों से इस पद की व्यवस्था की गयी है। यदि संवैधनिक दृष्टि से देखा जाए तो उप-प्रधानमंत्री और कैबिनेट के अन्य सदस्यों की स्थिति में कोई अंतर नहीं है। भारत में सन् 1947-50 के दौरान उप-प्रधानमंत्री पद पर सरदार वल्लभ भाई पटेल रहे तथा 1967-68 के मध्य श्री मोरारजी देसाई इस पद पर रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में तो दो उप-प्रधानमंत्री थे, वे थे-चौधरी चरण सिंह तथा बाबू जगजीवन राम। लालकृष्ण आडवाणी भारत के सातवें उप-प्रधानमंत्री हैं।
संघीय मंत्रिपरिषद
संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को उसकी शक्तियों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति उसकी सलाह के अनुसार कार्य करेगा। 42वें और 44वें संविधान संशोधनों द्वारा राष्ट्रपति के लिए यह बाध्यकारी हो गया है कि यह मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य
42वें संविधान संशोधन अधिनियम के पूर्व, संविधान के अनुच्छेद 74(1) के अनुसार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में, राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक मंत्रीपरिषद होगी, परन्तु वह सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं था। 42वें संविधान संशोधन (1976) के अनुसार यह आवश्यक कर दिया कि राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा।
44वें संविधान संशोधन अधिनियम (1978) के अनुसार राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह को एक बार पुनर्विचार के लिए भेज सकता है, परन्तु यदि मंत्रिपरिषद ने उसी सलाह को वापस भेज दिया तो राष्ट्रपति उसे मानने के लिए बाध्य होंगे।
संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री का चयन राष्ट्रपति करता है तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। व्यक्तिगत रूप से मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद को धारण करते हैं, जबकि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। मंत्री अपने पद और गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति के समक्ष लेते हैं। मंत्रिपरिषद में उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो संसद के सदस्य होते हैं।
संसद का सदस्य न होने की स्थिति में उन्हें 6 माह के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है। परंतु संविधान में यह व्यवस्था नहीं दी गयी है कि ऐसा व्यक्ति इस्तीफा देकर पुन: मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है या नहीं। 16 अगस्त, 2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह व्यवस्था दी है कि विधायिका का सदस्य निर्वाचित हुए बिना कोई व्यक्ति 6 माह से अधिक मंत्री पद धारण नहीं कर सकता। यदि चुनाव जीते बिना उस व्यक्ति को दोबारा मंत्री पद पर बहाल किया जाता है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 164(1) और 164(4) की योजना और भावना पर आघात जैसा होगा।
मंत्रिपरिषद का गठन :
मंत्रिमंडल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है। जब मंत्रिमंडल के सदस्यों को उनके कार्यों में सहायता देने के लिए राज्य मंत्रियों और उप मंत्रियों को नियुक्त किया जाता है, तब इन्हें मिलाकर मंत्रिमंडल को मंत्रिपरिषद की संज्ञा दी जाती है। मंत्रिमंडल तीन स्तरीय होता है- कैबिनेट स्तर के मंत्री, राज्य मंत्री तथा उपमंत्री।
कैबिनेट स्तर का मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है तथा उसकी सहायता के लिए राज्यमंत्री और उपमंत्री की नियुक्ति की जाती है। कभी-कभी राज्यमंत्री को भी विभाग का स्वतंत्र प्रभार दिया जाता है। सरकार की नीति का निर्णय मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा इसमें कभी-कभी राज्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया जाता है।
वेतन और भत्तेः कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री तथा उपमंत्री को वेतन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त इन्हें निःशुल्क आवास, यात्रा व चिकित्सा सुविधाएं, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता आदि भी मिलता है।
कार्यकाल: मंत्रिपरिषद का कार्यकाल लोकसभा के विश्वास पर निर्भर करता है, क्योंकि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। व्यक्तिगत रूप से किसी मंत्री का कार्यकाल प्रधानमंत्री के विश्वास पर निर्भर करता है, क्योंकि मंत्री की नियुक्ति एवं पद मुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
सामूहिक उत्तरदायित्व: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) कं अनुसार, मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। सरकार के प्रत्येक कार्य के लिए मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य जिम्मेदार होता है तथा मंत्रिपरिषद के फैसले को समूची सरकार का फैसला समझा जाता है।
सामूहिक उत्तरदायित्व को लोकसभा प्रश्न पूछकर, निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव तथा अविश्वास प्रस्ताव लाकर लागू करती है। यदि किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो उसे पूरे मंत्रिमंडल के खिलाफ समझा जाता है, फलतः पूरे मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना पड़ता है। साथ ही कोई भी मंत्री, मंत्रिपरिषद से या प्रधानमंत्री से परामर्श किये बिना किसी महत्वपूर्ण नीति की घोषणा नहीं
व्यक्तिगत उत्तरदायित्वः प्रत्येक मंत्री अपने विभागीय कार्य के लिए व्यक्तिगत रूप से भी उत्तरदायी होता है। उसे अपने विभाग या मंत्रालय से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है। इतना ही नहीं, प्रत्येक मंत्री को उन कार्यों का भी दायित्व लेना पड़ता है, जो उसके अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा किये जाते हैं। राष्ट्रपति के प्रति व्यक्तिगत उत्तरदायित्व का सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 75 (2) के अन्तर्गत समाविष्ट है। इसके अनुसार कोई भी मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करता है।
यद्यपि सामूहिक रूप से मंत्रिगण लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं, किन्तु वे व्यक्तिगत रूप से कार्यपलिका के प्रधान (राष्ट्रपति) के प्रति उत्तरदायी होंगे और विधान मंडल का विश्वास प्राप्त होने पर भी उन्हें पदच्युत किया जा सकेगा। व्यावहारिक दृष्टिकोण से व्यक्तिगत रूप से मंत्रियों को पदच्युत करने के लिए प्रधानमंत्री ही राष्ट्रपति को सलाह देता है। सामान्यत: इस शक्ति का प्रयोग करके प्रधानमंत्री अपने अवांछित सहकर्मियों से पदत्याग करने के लिए कहता है।
विधिक उत्तरदायित्व: भारतीय संविधान द्वारा विधिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत जैसा कि इंग्लैंड में है, अंगीकार नहीं किया गया है। इंग्लैंड में सम्राट बिना किसी मंत्री के हस्ताक्षर के कोई लोक कार्य नहीं कर सकता, जबकि भारत में मंत्रियों के दायित्व की संकल्पना और उसका विकास लोकतंत्र के सर्वोच्च सिद्धांतों के आधार पर किया गया है। यह है लोकसभा में जनता के सीधे निर्वाचित प्रतिनिधियों के प्रति सरकार का दायित्वा वस्तुतः भारत में उन कार्यों के लिए मंत्रियों का कोई उत्तरदायित्व नहीं होता, जो राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। उनके बारे में प्रमाणीकरण के रूप में प्रतिहस्ताक्षर की अपेक्षा मंत्री से नहीं की जाती, बल्कि उसकी अपेक्षा सरकार के किसी सचिव से की जाती है।
संविधान में यह भी उपबंध है कि कार्यपालिका के प्रधान को मंत्रियों ने क्या परामर्श दिया था, इसके विषय में न्यायालय कोई जांच नहीं कर सकेंगे। यदि राष्ट्रपति का कोई कार्य उसके द्वारा बनाए गये नियमों के अनुसार भारत सरकार के किसी सचिव द्वारा अधिप्रमाणित किया जाता है, तो उस कार्य के लिए कोई मंत्री उत्तरदायी नहीं हो सकता।
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