भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गयी है। यद्यपि भारत का संविधान संघात्मक है, फिर भी यहां नागरिकों को केवल एक की नागरिकता (भारत की) प्रदान की गयी है, जबकि विश्व के परिसंघीय सविधानों जैसे अमेरिका और स्विट्जरलैंड में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था है। इन देशों में राष्ट्रीय नागरिकता के अतिरिक्त उस राज्य की Citizenship भी प्राप्त होती है जहां उस व्यक्ति का जन्म हुआ है, किंतु भारत में एक ही नागरिकता उपलब्ध है चाहे वह किसी भी राज्य का निवासी हो।
नागरिकता : Citizenship
एकल नागरिकता भारत में एकल नागरिकता है अर्थात देश के किसी भी भाग में रहने वाले को भारत की ही नागरिकता प्राप्त है। नागरिकों के किसी राज्य में निवास के आधार पर नागरिकों के सम्बन्ध में कोई भेद नहीं किया जा सकता है, लेकिन किसी राज्य में स्थायी निवास के कुछ मामलों में लाभ हो सकते हैं। इस तरह के प्रावधान संसद और राज्य विधान मंडल दोनों ही बना सकते हैं।
नागरिकता की समाप्ति
जिस प्रकार कोई व्यक्ति किसी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर सकता है, उसी प्रकार कुछ विशेष परिस्थितियों में वह अपनी नागरिकता खो भी सकता है। सामान्यत: निम्नलिखित नियमों के तहत नागरिकता का लोप हो जाता है
(i) परित्याग द्वारा- यदि कोई व्यक्ति दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर ले, तो वह स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता को त्यागने की घोषणा कर सकता है।
(ii) समाप्तिकरण द्वारा- जब कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की नागरिकता अर्जित कर लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वत: समाप्त हो जाती है।
(iii) वंचित करने पर- भारत सरकार आदेश द्वारा किसी नागरिक को निम्न में से किसी आधार पर नागरिकता से बाँचत कर सकती है।
1. गलत या धोखे से नागरिकता प्राप्त करने पर।
2. संविधान के प्रति निष्ठाहीनता प्रदर्शित करने पर।
3. युद्ध के समय शत्रु की सहायता करने पर।
4. भारत से लगातार 7 वर्ष तक बाहर रहने पर।
5. भारतीय महिला द्वारा विदेशी नागरिक से विवाह करने पर।
(1) संविधान के अनुच्छेद 16(3) के अधीन संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि यह किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के अधीन किसी वर्ग या वर्गों के नियोजन के लिए यह अधिकथित करे कि उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में निवास करना आवश्यक अर्हता होगी।
इस अधिकार के प्रयोग में संसद ने लोक नियोजन (निवास की अपेक्षा) अधिनियम, 1957 पारित करके केन्द्र सरकार को आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर तथा त्रिपुरा में अराजपत्रित पदों में नियुक्ति के लिए निवास की अपेक्षा निहित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति दी थी। बाद में 1974 में इस अधिनियम को संसद द्वारा निरस्त कर दिया गया। इस अधिनियम की समाप्ति के बाद किसी भी व्यक्ति को किसी भी राज्य में इस आधार पर नियोजन से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह उस राज्य का निवासी नहीं है।
(2) कोई राज्य विधानमंडल अपने राज्य के निवासियों के लाभ के लिए कोई कानून बना सकता है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 15(1) में केवल, धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद किया गया है। इसमें निवास स्थान का उल्लेख नहीं है। इस प्रकार संविधान भी यह अनुमति देता है कि राज्य संविधान द्वारा प्रदत अधिकारों से भिन्न विषयों में अपने निवासियों को लाभ प्रदान कर सकता है। उच्चतम न्यायालय ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा कि अनुच्छेद 15 में निवास स्थान के आधार पर विभेद को प्रतिषिद्ध नहीं किया गया है, इसलिए राज्य अपने रान्य की शिक्षण संस्थानों में फीस आदि के सम्बन्ध में अपने निवासियों को रियायत दे सकता है।
(3) जम्मू-कश्मीर राज्य के विधानमंडल को निम्नलिखित विषयों के संबंध में राज्य में स्थायी रूप से निवास करने वाले व्यक्ति को अधिकार तथा विशेषाधिकार प्रदान करने की शक्ति प्रदान की गयी है।
(i) राज्य के अधीन नियोजन के संदर्भ में,
(ii) राज्य में अचल सम्पत्ति के अर्जन के सन्दर्भ में,
(iii) राज्य में स्थायी रूप से बस जाने के सन्दर्भ में,
(iv) छात्रवृतियों अथवा इसी प्रकार की सहायता के सन्दर्भ में।
नागरिकता का महत्व
किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र या देश में राज्य की ओर से नागरिकों को कुछ ऐसे राजनीतिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, जो अन्य लोगों को प्रदान नहीं किए जाते। नागरिकता लोकतंत्रात्मक राजव्यवस्था के मूल अपरिहार्य सिद्धांत को कानूनी रूप प्रदान करती है।
यह इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि व्यक्ति को राज्य को पूर्ण राजनीतिक सदस्यता प्राप्त है, राज्य के प्रति उसकी स्थायी निष्ठा है और वह राज्य द्वारा इस बात की अधिकाधिक स्वीकृति है कि उसे राजनीतिक प्रणाली में शामिला कर लिया गया है। नागरिकता कतिपय दायित्व, अधिकार, कर्तव्य और विशेषाधिकार प्रदान करती है। ये अधिकार विदेशियों को प्रदान नहीं किये जाते।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986
संशोधित अधिनियम के प्रावधान निम्न हैं –
1. भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति यदि भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत होना चाहता है, तो उसे भारत में लगातार पांच वर्षों से रहने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करन होगा। इससे पूर्व वह अवधि मात्र छह मास की थी।
2. किसी भी बच्चे (व्यक्ति) को भारत में जन्म लेने के कारण स्वतः नागरिकता नहीं दी जायेगी। जन्म के आधार पर मात्र उनहों लोगों को नागरिकता प्रदान की जा सकती है, जिनके माता-पिता में से कोई एक पहले से ही भारत का नागरिक रहा हो। इससे पूर्व के अधिनियम में मात्र जन्म लेने से ही स्वत: नागरिकता प्राप्त होने का प्रावधान था।
3. प्रवासी के रूप में रहने वाले विदेशी व्यक्ति के लिए देशीयकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने के लिए भारत में निवास करने की जो शर्त पूर्व में पांच वर्ष थी, उसे बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया।
4. इस संशोधन अधिनियम के पश्चात भारतीय पुरुष से विवाह करने वाली विदेशी महिला को नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1992
इस संशोधन विधेयक के अनुसार भारत के बाहर पैदा होने वाले बच्चे को, यदि उसकी मां भारतीय है तो उसे भारत की नागरिकता प्राप्त होगी। इससे पूर्व भारत से बाहर पैदा हुए बच्चे को केवल उसी स्थिति में भारत को नागरिकता प्राप्त होती थी, यदि उसका पिता भारत का नागरिक हो।
नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003
प्रवासी भारतीयों व विदेश में बसे भारतीय मूल के लोगों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से संसद द्वारा अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है। इसके लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2003 को सर्वसम्मति से पारित किया गया। यह विधेयक लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया
ओवरसीज सिटिजनशिप
भारत सरकार ने जनवरी 2005 में ओवरसीज सिटिजनशिप योजना की घोषणा की। इस योजना का लाभ भारतीय मूल के वे सभी लोग ले सकते हैं, जो 26 जनवरी 1950 के पश्चात् प्रवासी बने हैं और जिन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर किसी अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर ली है। परंतु उन्हें ओवरसीज सिटिजनशिप तभी प्रदान की जाएगी, जब उनका देश स्थानीय कानूनों के तहत दोहरी नागरिकता को स्वीकृति प्रदान करता हो।
ओवरसीज सिटिजनशिप प्राप्त करने का तात्पर्य यह नही है कि वह भारत का नियमित नागरिक हो गया। वह न तो भारतीय पासपोर्ट हासिल कर सकता है और न ही उसे वोट डालने का अधिकार होगा। उसे भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसा सांविधानिक पद नहीं दिया जा सकता और न ही वह लोकसभा, राज्य सभा, विधानसभा या विधान परिषद का प्रत्याशी बन सकता है।
ओवरसीज सिटिजन बिना रोक-टोक भारत भ्रमण कर सकता है। जब किसी को ओवरसीज सिटिजनशिप के रूप में पंजीकृत किया जाता है, तो उसने पासपोर्ट पर ‘यू’ बोजा स्टीकर लगा दिया जाता है।
पर्सन्स ऑफ इंडियन ऑरिजिन कार्ड
भारत सरकार ने ‘पर्सन्स ऑफ इंडियन ऑरिजिन’ PIOकार्ड स्कीम को अगस्त 2002 में संशोधित किया है, जिसका उद्देश्य अपनी जड़ों की ओर लौटने की यात्रा को अधिक सरल, आसान, लचीला और पूर्ण रूप से समस्याओं से मुक्त बनाना है। PIO स्कीम 1999 में आरंभ की गई थी। |
PIO कार्ड के लिए कौन से व्यक्ति पात्र हैं?
(i) वह व्यक्ति जो भारत का नागरिक या भारतीय मूल के व्यक्तिका पति/पनि हो।
(ii) यह योजना बहुत व्यापक है क्योंकि यह चार पीढ़ियों से संबंध रखती है और साथ ही भारतीय नागरिक या भारतीय मूल के व्यक्ति के विदेशी जीवनसाथी का भी ध्यान रखती है। (iii) ऐसा कोई भी व्यक्ति जो कभी भी भारतीय पासपोर्ट का धारक रहा हो, या वह या उसके माता-पिता या पितामह-मातामह या प्रपितामाह-प्रमातामह का जन्म 1935 के भारत सरकार अधिनियम में उल्लिखित भारत और उन अन्य क्षेत्रों में हुआ हो, जो उसके बाद भारत के अंग बने और वहां स्थायी रूप से रहा
PIOबनाम OCI
- PIO कार्ड व ओवरसीज सिटीजनशिप कार्ड (OCl and) की तुलना
- OCI कार्ड धारक व्यक्ति भारत में बिना बीजा के आजीवन भारत की यात्रा कर सकता है जबकि PIO कार्ड धारक व्यक्ति केवल 15 वर्ष तक ही बिना बीजा के भारत की यात्रा कर सकता है।
- OCI कार्ड धारक व्यक्ति को भारत में लम्बे प्रवास के दौरान पुलिस रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं होती है, जबकि PIO कार्ड धारक व्यक्ति को प्रत्येक यात्रा के दौरान 180 दिनों से अधि क के प्रवास पर स्थानीय पुलिस प्राधिकारी के यहां रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।
इन्हें भी पढ़ें –
- नागरिकता | Citizenship [Part-1]
- संवैधानिक इतिहास | Constitutional History [Part-3]
- संवैधानिक इतिहास | Constitutional History [Part-2]
- संवैधानिक इतिहास | Constitutional History[Part-1]
- संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Constitution [Part-2]
- संविधान की प्रस्तावना | Preamble of the Constitution [Part-1]